मंदिर जी का परिचय
अतिशय क्षेत्र देहरा तिजारा जी से बीस किलोमीटर दूर फिरोजपुर झिरका में स्थित है श्री 1008 दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी। लाल पत्थर से बना होने के कारण बड़ा मंदिर जी को लाल मंदिर भी कहा जाता है। वर्तमान मंदिर जी के परिसर में दो जिनालय निर्मित है जिसमें से श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर 450 से 500 वर्ष प्राचीन है तथा श्री 1008 चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर लगभग 250 वर्ष प्राचीन है।
श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, गढ़ भीतर
मंदिर जी का निर्माण आज से 450 से 500 वर्ष पूर्व जैन समाज द्वारा करवाया गया था। पहले मंदिर जी का गर्भगृह एक चैत्यालय के रूप में था। वर्ष 2010 में आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज का आगमन मंदिर जी में हुआ। उन्होंने मंदिर जी की दशा को देखकर समाज से मंदिर जी के जीर्णोद्धार के लिए कहा। वर्ष 2010 में आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज के सानिध्य में ही मंदिर जी का जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर जी में प्रतिमाओं के पंचकल्याणक के साथ शिखर का निर्माण करके चैत्यालय को मंदिर जी का रूप दे दिया गया। पहले मंदिर जी की वेदी में तीन प्रतिमाएँ होती थी जिसमें मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की थी। मूलनायक प्रतिमा के साथ श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान एवं श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी की प्रतिमा विराजमान थी। जैन परिवारों द्वारा वर्ष 2010 में पंचकल्याणक के बाद तीनों प्रतिमाओं के साथ श्री 1008 आदिनाथ भगवान एवं श्री 1008 महावीर भगवान जी की अष्टधातु से निर्मित प्रतिमाओं को भी वेदी में ही विराजमान किया गया। मंदिर जी के गर्भगृह में दीवारों एवं वेदी पर सुन्दर स्वर्ण का कार्य किया गया है जिसे देखकर हृदय में शान्ति का अनुभव होता है। प्रतिदिन जैन समाज से श्रावक आकर प्रतिमाओं के दर्शन कर अपने जीवन का कल्याण करते है।
अज्ञानतावश भूल होना
स्थानीय जैन समाज द्वारा बताया जाता है कि आज से 70 वर्ष पूर्व एक परिवार हुआ करता था। वह परिवार हर प्रकार की सुविधाओं से संपन्न था। एक दिन परिवार के कुछ सदस्यों ने इस मंदिर जी की प्रतिमाओं को दूसरे मंदिर जी की वेदी में रख दिया। उन्होंने यह कार्य किसी की राय लिए बिना ही स्वयं पूरा किया। कुछ समय में ही उनके परिवार में तनाव बढ़ने लग पड़ा तथा उनकी सारी संपन्नता धीरे-धीरे चली गई। कुछ समय पश्चात उस परिवार के सदस्य क्षेत्र छोड़कर दिल्ली एवं उत्तर-प्रदेश जाकर बस गए। बाद में परिवार के कुछ सदस्यों ने आकर मंदिर जी में अपनी अज्ञानतावश भूल को स्वीकार किया एवं क्षमा याचना की। उन्होंने उन प्रतिमाओं को फिर से श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर की वेदी में विराजमान किया। तब जाकर उनके परिवार की आर्थिक दशा में सुधार आया।
जैन समाज एवं सुविधाए
फिरोजपुर झिरका में लगभग 150 जैन परिवारों का संपन्न समाज है। जैन समाज द्वारा मंदिर जी के हर कार्यों में बड़े उत्साह के साथ हिस्सा लिया जाता है। मंदिर जी में प्रतिदिन पूजा-प्रक्षाल के लिए आने वाले श्रावको की शुद्धता का पूरा ध्यान रखा गया है। यदि कोई यात्री दूर के क्षेत्र से मंदिर जी में दर्शन करने आता है तो उसके लिए उचित व्यवस्था का प्रबंध भी जैन समाज द्वारा किया जाता है। सन् 1996 में जैन मुनि श्री 108 ज्ञानभूषण जी के गुरु श्री 108 शान्तिसागर जी की समाधि फिरोजपुर झिरका में हुई। उनकी इच्छा थी कि आर्थिक रूप से कमजोर समाज की कन्याओं के लिए एक कन्या विद्यालय का निर्माण किया जाना चाहिए। उनकी यह इच्छा जैन समाज ने वर्ष 1996 में जैन कन्या विद्यालय की नींव डालकर पूरी की। 1999 में विद्यालय बनकर तैयार हो गया, तथा विद्यालय का नाम श्री शान्तिसागर जैन कन्या महाविद्यालय रखा गया। बाद में इसके परिसर में ही जैन हाई स्कूल का निर्माण किया गया।
क्षेत्र के बारे में
फिरोजपुर झिरका भारत के हरियाणा राज्य के नूहं ज़िले में स्थित एक नगर है। नूहं जिला भारत के हरियाणा राज्य के 22 जिलों में से एक है। इसमें 1,860 वर्ग किलोमीटर (720 वर्ग मील) और 10.9 लाख जनसंख्या का क्षेत्रफल है। यह उत्तर में गुड़गांव जिले, पश्चिम में रेवारी जिला और पूर्व में फरीदाबाद और पलवल जिलों से घिरा है। यह मुख्य मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र हैं। यह हरियाणा और उत्तर-पूर्वी राजस्थान का आधुनिक दक्षिणी भाग है। मेवात में अरावली पर्वत के कई पहाड़ी पर्वत हैं। यह कई शताब्दियों तक अपने निवासियों के हिंसक चरित्र के लिए प्रसिद्ध था जिन्होंने हर बार तुर्क, पठान, मुगल और दिल्ली में ब्रिटिश शासकों को बहुत परेशान किया था। मुगल काल में, मेवात ने दिल्ली और आगरा के सुबा को अपना हिस्सा बना लिया था। इसके सबसे प्रसिद्ध शहर नारनौल, कोटिला, इंदौर, अलवर, तिजारा और रेवाड़ी थे। जिले में मुख्य व्यवसाय संबद्ध और कृषि आधारित गतिविधियों के साथ कृषि है। पशुपालन विशेष रूप से डेयरी, लोगों के लिए आय का माध्यमिक स्रोत है और जो लोग अरावली की पहाड़ी रेंज के करीब रहते हैं, वे भेड़ों और बकरियों को भी रखते हैं।
समिति
मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन के लिए समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
प्रधान - श्री मुरारीलाल जैन
सदस्य -श्री योगेश जैन