गोपाचल का इतिहास
महाभारत से पूर्व ग्वालियर नगर और क्षेत्र का पुराना नाम गोपराष्ट्र था पहले यह गोपराष्ट्र चेदि जनपद के अंतर्गत था। ग्वालियर शहर के मध्य में एक विशाल किला है और इसी किले के आंचल में स्थित है गोपाचल पर्वत। जिस पहाड़ी पर गवालियर दुर्ग खड़ा है, भू-गर्भ शास्त्रियों के अनुसार यह पहाड़ी हिमालय से भी प्राचीन बताई गई है। एक गाथा के अनुसार गोपाचल पर्वत 7वीं शताब्दी और 15वीं शताब्दी में बना था। 7वीं शताब्दी तक इस पहाड़ी पर सिर्फ जंगल था और समतल क्षेत्र में घास के मैदान थे। मवेशी नामक एक व्यक्ति गाय चराने के लिए इस जगह पर रोज आता था। ऐसे पशुपालकों को ग्वाला नाम से पुकारा जाता था और गायों को स्थानीय हिंदी भाषा में गौ कहा जाता था। इस कारण इस क्षेत्र का नाम गोपाचल पड़ा जिसका सीधा सा अर्थ है गायों का क्षेत्र होता है। बाद में 8वीं शताब्दी में, स्थानीय शासक सूरज सेन ने शिकार अभियान के दौरान इस पहाड़ी का दौरा किया। प्यास के कारण पीने के पानी की तलाश में वह स्थानीय संत ग्वालिपा की गुफा में पहुँचे जिन्होंने स्थानीय झरने से उनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था की।
इस पानी का उनके शरीर पर चमत्कारी प्रभाव पड़ता है क्योंकि सूरज सेन कुष्ठ रोगी थे और यह पानी पीने से उनका रोग को ठीक होगया। इस प्रकार संत ग्वालिपा के अनुरोध पर, यहीं किले का निर्माण हुआ और शहर का नाम ग्वालियर पड़ा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गोपाचल नाम ग्वालियर से भी पुराना है लेकिन प्रमुख मूर्तिकला कार्य 15वीं शताब्दी में तोमर वंश के शासनकाल के दौरान किया गया था। इस पहाड़ी के अन्य पुराने नाम गोपागिरी, गोपाद्रि आदि थे जिनका सामान्य अर्थ "गाय-पालन" था। पुराणों का हवाला दें तो इस पहाड़ी का नाम गोमंत था।
यह प्राचीन कलात्मक जैन समूह का एक अद्वितीय स्थान है यहाँ पर हजारों की संख्या में विशाल जैन प्रतिमाएँ है जिसकी संख्या लगभग 1300 से 1500 के मध्य बताई जाती है। पर्वत को तराश कर ही प्रतिमाओं का रूप दिया गया है। कहा जाता है इस विशाल प्रतिमाओं का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूँगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ था। काल परिवर्तन के साथ जब मुगल सम्राट बाबर ने गोपाचल पर अधिकार किया तब उसने इन विशाल प्रतिमाओं को देखकर 1557 में इन्हें नष्ट करने का आदेश दिया। बाबर की सेना प्रतिमाओं को नष्ट करते हुए भगवान पार्श्वनाथ जी की बड़ी प्रतिमा को ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ी। परंतु जैसे ही उन्होंने पार्श्वनाथ भगवान जी की विशाल पद्मासन मूर्ति पर प्रहार किया तो उदयवीर पुण्य चमत्कार हुआ। सभी सैनिकों के नेत्रों के सामने अंधेरा छा गया तथा सभी भयभीत होकर भाग गए। वह विशाल प्रतिमा नष्ट होने से बच गई। आज भी यह विश्व की सबसे विशाल 42 फुट ऊंची पद्मासन पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा अतिश्य से परिपूर्ण है। गोपाचल पर्वत जैन समाज के लिए एक श्रद्धा का केंद्र है।
सुविधाएं एवं धर्मशाला
ग्वालियर जैन तीर्थ क्षेत्र होने के कारण प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में लोग क्षेत्र में आकर दर्शन करते है। ग्वालियर, मध्य प्रदेश का मुख्य नगर होने के कारण हर प्रकार की सुविधा के लिए जाना जाता है। क्षेत्र में दूर से आने वाले यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था बनी हुई है। क्षेत्र में अनेक जैन धर्मशालाओं का निर्माण किया गया है ताकि मंदिर जी में दर्शन करने के लिए आने वाले यात्रियों को किसी प्रकार की असुविधा ना हो।
क्षेत्र के बारे में
ग्वालियर को मध्यप्रदेश का सबसे लोकप्रिय जिला माना जाता है। ग्वालियर क्षेत्रफल की दृष्टि से 4,560 किमी² क्षेत्र में फैला है। ग्वालियर भारत की राजधानी दिल्ली से 343 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ग्वालियर जिले का नाम इस जिले पर अवस्थित एक प्रसिद्ध किले के नाम के अपभ्रंश होकर नामाकरण हुए स्थान के नाम पे रखा गया था। इस प्रसिद्ध किले का नाम अवस्थित पहाड़ के नाम से लिया गया था। इस समतल शिखरयुक्त पहाड़ को गोपाचल, गोपगिरि, गोप पर्वत या गोपाद्रि कहा जाता था। यह नाम अपभ्रंश होकर ग्वालियर शब्द का निर्माण हुआ है। ग्वालियर को इसके पुराने मंदिरो एवं किलो के लिए पुरे विश्व में जाना जाता है। पर्यटन स्थल की दृष्टि से भी ग्वालियर मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। यहाँ स्थित है ग्वालियर का किला, जय विलास पैलेस तथा तिगरा डैम जैसे अन्य पर्यटन स्थल यहाँ मौजूद है।
समिति
गोपाचल पर्वत एक जैन धरोहर होने के कारण जैन समाज का मुख्य केंद्र बिन्दु है। गोपाचल पर्वत जी के संरक्ष्ण के लिए श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गोपाचल पर्वत संरक्षक न्यास का निर्माण किया गया है, जिसके सदस्य इस प्रकार है -
अध्यक्ष - श्री श्यामलाल विजयवर्गीय
मंत्री - श्री अजीत वरैया
कोषाध्यक्ष - श्री अनिल शाह