हस्तिनापुर बड़ा जैन मंदिर

एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का निर्माण सन् 1806 में हुआ है
  • स्थान
    श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश
  • मंदिर समय सारिणी
    प्रात: 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक।
मंदिर जी का परिचय
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हस्तिनापुर, जिला मेरठ से 37 किलोमीटर और दिल्ली से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान राजसी, भव्यता, शाही संघर्षों एवं महाभारत के पांडवों और कौरवों की रियासतों का साक्षात गवाह रहा है। हस्तिनापुर एक अत्यंत प्राचीन जैन तीर्थ क्षेत्र के रुप में गौरवान्वित रहा है। यह वही स्थान है जहाँ पर प्रथम तीर्थंकर श्री 1008 ऋषभदेव भगवान जी का पहला आहार हुआ था। जिसके बाद से ही अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाने लगा। यहाँ पर ही 16वें तीर्थंकर श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी के गर्भ, जन्म, दीक्षा और ज्ञान कल्याणक हुए। यही नहीं उपरांत 17वें तीर्थंकर श्री 1008 कुंथुनाथ भगवान जी और 18वें तीर्थंकर श्री 1008 अरहनाथ भगवान जी के भी यहाँ पर हुए चार कल्याणक- गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवल ज्ञान कल्याणक। यहीं पर 19वे तीर्थंकर श्री 1008 मल्लिनाथ भगवान जी का समवशरण आया था। 23वे तीर्थंकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी का आगमन भी इसी क्षेत्र पर हुआ।

धर्मनगरी हस्तिनापुर में ही स्थित है श्री 1008 दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जो वर्तमान में हस्तिनापुर का सबसे प्राचीन जैन मंदिर है। मंदिर परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर 31 फुट ऊँचा मानस्तम्भ बना हुआ है। जिसका निर्माण 1955 बताया जाता है। मंदिर जी में केवल एक ही खंड है जो काफी बड़ा है। चारों ओर जिनमंदिर तथा बीच में मुख्य मंदिर निर्मित है। मुख्य मंदिर जी को लगभग चार फ़ीट ऊँची चौंकी देकर बनाया गया है और जिनालय के चारो ओर रेलिंगदार चबूतरा भी निर्मित है। आंतरिक भाग जैन धर्मग्रंथों की कहानियों को दर्शाने वाली सोने की पेंटिंग से उभारा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर जी की आंतरिक सजावट में लगभग 7 से 8 किलोग्राम सोना खर्च किया गया है।

मुख्य मंदिर जी में मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी की है। यह श्वेत पाषाण की लगभग 500 वर्ष प्राचीन पद्मासन प्रतिमा है। जो बड़ी संख्या में भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है। मूल प्रतिमा के दायीं ओर श्री 1008 अरहनाथ भगवान जी एवं बायीं ओर श्री 1008 कुंथुनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। वेदी में पंचबालयती भगवान वासूपुज्य, भगवान मल्लिनाथ, भगवान नेमिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान महावीर स्वामी जी का एक फलक काफी प्राचीन प्रतीत होता है। बीच की प्रतिमा पद्मासन और दो प्रतिमा खड्गासन है। इसी वेदी में कई जैन प्रतिमाओं के साथ ही चतुर्थकालीन प्रतीत होती दो खंडित प्रतिमाएँ भी विराजमान है। सम्भवतः मुस्लिम काल में मुजफ्फरनगर के भारग गांव के जंगल में मिली थी, जो यहाँ पर ले आयी गईं। प्रतिमा पर कोई लेख नहीं है इसलिए लोग चतुर्थ काल की मानते है।

मंदिर जी के बायीं ओर अम्बिका देवी की प्रतिमा को एक कमरे में विराजमान किया गया है। यह प्रतिमा नहर की खुदाई से प्राप्त हुई थी। प्रतिमा के मस्तक पर भगवान नेमिनाथ जी विराजमान है। वेदी के समीप ही श्री पार्श्वनाथ भगवान जी का नवनिर्मित मंदिर है जिसमें 11.25 फुट ऊँची, पद्मासन व 11 फन वाली काले पाषण की मनोहारी प्रतिमा विराजमान है। पार्श्वनाथ मंदिर के बराबर में विशाल नंदीश्वरदीप की रचना की गई है। नंदीश्वरदीप आधुनिक अठपहलू आकार का बना हुआ है। जिसमें 52 चैत्यालय एवं पंचमेरू की रचना की गई है। नंदीश्वरदीप समीप श्री नेमिनाथ जिनालय बना हुआ है। उपरोक्त जिनालय के निकट अरहनाथ भगवान जी का मंदिर निर्मित है जिसमे अरहनाथ भगवान की पाषण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर के दायीं ओर जिनालय में युग प्रर्वतक भगवान आदिनाथ की परम शान्त मुख मुद्रा युक्त सवा सात फुट ऊंची मनोहरी खड्गासन मुद्रा में स्थापित है। इस मन्दिर के समीप तीन मूर्ति मन्दिर है। जिसका निर्माण मुख्य मन्दिर के बाद हुआ था, इसमे तीन वेदिया है। बांयी ओर वेदी में शान्तिनाथ भगवान की 5 फुट 11 इंच सलेटी रंग की चतुर्थकालीन अवगाहना वाली खड्गासन प्रतिमा विराजमान है।

इसी पंक्ति में विशाल रूप में मल्लिनाथ भगवान जी का 60X70 फीट क्षेत्र में बना हुआ समवशरण है। श्री आदिसागर जी महाराज की प्ररेणा एवं जैन समाज के सहयोग से समवशरण मन्दिर में 992 चैत्यालय एवं चारों दिशाओं में चार मानस्तम्भ है। मध्य में मल्लिनाथ भगवान जी की चार मूर्तियाँ चारों ओर विराजमान हैं। आठ इन्द्र चँवर ढोरते खड़े है। चार पुष्पक विमानों से पुष्प वर्षा हो रही है। चारों ओर 9-9 इन्द्र चक्र लिये खड़े है। बारह सभायें बनाई हुई है। समस्त समोवशरण श्वेत संगमरमर से बना है। इस जिनालय की प्रतिष्ठा वीर निं० सं० 2420 फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष तृतीया दिन सोमवार को आचार्य विद्यानन्दजी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हुई। समवशरण मन्दिर के समीप कुन्थुनाथ जिनालय है। जिसमें भगवान कुन्थुनाथ जी की श्वेत संगमरमर की पदमासन मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है। इसके समीप ही भगवान महावीर जी और भगवान चन्द्रप्रभु जी का जिनालय निर्मित है जिसका निर्माण 7 मई 2006 को हुआ था। आगे चलकर बाँयी ओर मन्दिर प्रांगण में विशाल भगवान बाहुबली जी का मन्दिर है। जिसमें गुलाबी संगमरमर की एक विशालकाय भगवान बाहुबली की प्रतिमा विराजमान है। इसके साथ ही जल मंदिर एवं कीर्ति स्तंभ भी निर्मित है यह सभी मंदिर मूल वेदी के चारों ओर निर्मित है।


सुविधाएं एवं धर्मशाला

मंदिर जी में आने वाले यात्रियों के लिए क्षेत्र में ठहरने की व्यवस्था बनी है। क्षेत्र में बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए 185 आवास - कमरे (अटैच बाथरूम) के साथ तथा 125 कमरे (बिना बाथरूम) के साथ उपलब्ध है। यात्री ठहराने की कुल क्षमता - 2500 है। धर्मशाला में भोजनालय की व्यवस्था भी सर्वोत्तम बनी हुई है।

4 नवंबर 1998 में वार्षिक मेले के शुभ अवसर पर श्री आचार्य विद्यानंद जैन चित्रकला संग्रहालय का उद्घाटन जीवेन्द्र कुमार जैन, गाजियाबाद के कर कमलों द्वारा हुआ था। इसके अतिरिक्त यहाँ पर प्राचीन प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्रों के जैन स्मारक एवं प्रतिमाओं के छायाचित्र अंकित किये हुए हैं। जिसमें अद्भुत कला के दर्शन होते हैं। इसी हॉल में साहू शांति प्रसाद जी की प्रेरणा भारतीय ज्ञान पीठ द्वारा विशाल साहित्य प्रदर्शित किया गया है। जो सभी श्रावको व शोधकर्ताओं के लिए आकर्षक का केंद्र रहा है।

भारत प्रसिद्ध श्री दिगम्बर जैन उत्तर प्रान्तीय गुरुकुल भी इसी पावन धारा पर स्थित है। गुरुकुल की स्थापना सन् 1945 में सहारनपुर के गणेश प्रसाद वर्णी जी व मनोहर लाल वर्णी जी की प्रेरणा व आशीर्वाद से हुई थी। यहाँ पर गुरुकुल का विशाल भवन है। जिसमें 30 से 40 कमरे हैं और एक बड़ा हॉल है। विद्यालय के साथ इसमें एक छात्रावास भी है। यह पर 95 से 100 विद्यार्थियों को निशुल्क धार्मिक व संस्कृत शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती है। विद्यार्थियों के लिए भोजन व्यवस्था भी लागत मात्र पर ही की गई है, ताकि विद्यार्थियों को अच्छा पौष्टिक भोजन मिल सके। बच्चों के लिए प्रतिदिन दूध व फल व्यवस्था भी यहाँ पर की गई है।


हस्तिनापुर क्षेत्र के बारे में

उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ शहर में स्थित हस्तिनापुर कुरु वंश की राजधानी के तौर पर प्रसिद्ध रहा है। परन्तु यह क्षेत्र महाभारत काल से भी पहले एक महत्वपूर्ण जैन आस्था का केंद्र रहा है। हस्तिनापुर ने हर तरह के गौरवशाली दिनों को देखा और मनाया है। आज भी यह भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ पर जैनत्व के कई विशाल क्षेत्र विकसित हैं जहाँ पर हर प्रकार की ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था सुचारु रूप से बनी हुई है। कुछ प्रमुख जैन क्षेत्र इस प्रकार हैं - श्री दिगम्बर जैन प्राचीन बड़ा मंदिर, श्री दिगम्बर जैन मंदिर कैलाश पर्वत रचना, श्री दिगम्बर जैन मंदिर जम्बूदीप रचना, श्री दिगम्बर जैन नसिया जी एवं श्री अष्टापद श्वेताम्बर जैन तीर्थ।


समिति

श्री दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र प्रबन्धकारिणी समिति, हस्तिनापुर द्वारा श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी का संचालन किया जाता है। समिति के सदस्य इस प्रकार है -

अध्यक्ष - श्री त्रिलोकचन्द जैन, दिल्ली

महामंत्री - श्री मुकेश जैन सर्राफ, मेरठ

प्रबन्धक - श्री मुकेशकुमार जैन, हस्तिनापुर