हिसार मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र
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एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 दिगम्बर जैन मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र, हिसार
  • निर्माण वर्ष
    गर्भगृह लगभग 800 वर्ष प्राचीन है
  • स्थान
    जहाजपुल चौक, हिसार, हरियाणा
  • मंदिर समय सारिणी
    प्रातः 6 बजे से रात्रि 8:30 बजे तक
मंदिर जी का परिचय
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यह ऐतिहासिक श्री दिगम्बर जैन मन्दिर लगभग 800 वर्ष पूर्व का बना हुआ है। मन्दिर जी का इतिहास बड़ा रोचक है। मुग़ल शासन काल में सुलतान फिरोजशाह ने सन् 1354 में 10 जैन मंदिरों के शिल्पकारी पत्थरों को तोड़कर यहाँ गुजरी महल किले के निर्माण में प्रयोग किया था। सुल्तान फिरोज यहाँ जंगल में शिकार खेलने आया करता था। सुल्तान ने यहाँ किला व महल बनवाया और उसका नाम हिसार-ए-फिरोजा रखा। सन् 1947 में देश विभाजन के पश्चात नगर के व्याहर नहर के किनारे इस विशाल खण्डर नुमा परिसर को देखने के लिए यहाँ के कुछ बुद्धिजीवी आये। देखने से ऐसा प्रतीत हुआ की यह जैन मन्दिर हो सकता है क्योंकि भवन में खम्भों पर पर इन्द्र इन्द्रानियों के चिन्ह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे।

इसी क्षेत्र में नहर विभाग का दफ्तर अंग्रेजों के समय से चला आ रहा था। पड़ताल के उन दिनों नहर विभाग में श्री शीकीचन्द जैन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और उस विभाग के सुपरिटेन्डेन्ट भी एक जैन सजन थे। उन्होने बताया कि आप जिस स्थान पर खड़े है और जिस प्राचीन खण्डहर को देख रहे है यह नहर के सरकारी कागजात में दिगम्बर जैन मन्दिर है। यह स्थान प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर है इसका प्रमाण जैन ग्रन्थों में भी उपलब्ध है। सन् 1947 में हिसार के उपरोक्त लेख के आधार पर यहाँ के सुप्रसिद्ध एडवोकेट तथा जैन समाज के अग्रणीय नेता महावीर प्रसाद जैन एडवोकेट ने भारत सरकार के पुरातत्व विभाग को मंदिर जी के बारे में बताया। कई वर्ष तक सरकार से पत्र व्यवहार और जैन समाज के शिष्टमण्डल ने भी कई बार भारत सरकार के मंत्रीगण व उच्च अधिकारियों से भेंट की।

इस प्राचीन जैन धरोहर में केन्द्रीय सरकार ने 5 जून 1962 को जैन समाज को पूजा-पाठ करने की अनुमति प्रदान कर दी। विधिवत पूजा पाठ होने लगा। ला0 बनवारी लाल बजाज सोनिपतिया ने समवशरण के बिल्कुल सामने परिसर में 1962 में भगवान महावीर स्वामी की चरण पादुका की प्रतिष्ठा करवाई। वर्ष 1964 में पूज्य श्री देवेन्द्र कांति भट्टारक नागौर का यहाँ आगमन हुआ। उन्होंने अपने ज्ञानयोग से परिकोटा में तीर्थकरों की प्रतिमाएँ भूगर्भ में होने का संकेत दिया। हजारों नर-नारियों के जयघोष में खुदाई के दौरान अति प्राचीन चन्दन रंग की पार्श्वनाथ भगवान जी की चतुर्थ काल की प्रतिमा, जो की मंदिर जी की मूल प्रतिमा है तथा भगवान अन्तनाथ जी की संवत 1612, श्री पंचवालयता तीर्थकर जिसपर वीर संवत 1776 ख़ुदा हुआ है और दो तांबे के यन्त्र जिनपर श्रुत सम्बन्ध ऋषि मण्डल खुदा हुआ है को निकला और मन्दिर जी में उनकी स्थापना की गई है।

इन प्रतिमाओं के दर्शन करने के लिए भारी संख्या में जैन तथा अजैन सभी भाई आये। ला0 महावीर प्रसाद जैन सराफ ने जहाँ भूगर्भ से प्रतिमाएँ प्राप्त हुई थी, सन् 1964 में भगवान पार्श्वनाथ-कुन्दनाथ तथा अनन्तनाथ व पंचकुमार की चरण पादुकाओं का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठि करवाई। सरकार के आदेशानुसार 16 मई 1968 को तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर चौ0 हरफूल सिंह ने स्वयं मौके पर आकर यह धर्म स्थल विधि पूर्वक समाज को सौंप दिया। समवशरण का भाग खण्डन होने व गुम्बज न होने पर श्री हेमचन्द जैन जनरल मैनेजर दिल्ली टेक्सटाइल मिल, हिसार द्वारा गुम्बज का निर्माण करवाया तथा श्री मुनिसुव्रतदास जैन द्वारा कलश स्थापित करवाया गया। स्व लाला फतेहबन्द जैन रईस की धर्मपत्नी श्रीमती हड़कां देवी द्वारा भगवान पार्श्वनाथ जी की काले पत्थर की खड्गासन प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई। श्री ऋषि देव जैन द्वारा 2006 में बाहुबली जी की खड्गासन प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई गई।

हिसार में सन् 2007 में पूज्य मुनि श्री सौरभ सागर जी का चातुर्मास हुआ। मुनि श्री के ज्ञानयोग से मानस्तम्भ के निर्माण स्थल के भूगर्भ से 30 अक्टूबर को खुदाई के दौरान भगवान पार्श्वनाथ की 1074 वर्ष पूर्व की भगवान आदिनाथ की 978 वर्ष पूर्व की तथा भगवान महावीर स्वामी की 952 वर्ष पूर्व की मनोहारी प्रतिमाएँ प्रगट हुई। भूगर्भ से निकली प्रतिमाएँ मन्दिर जी में सन् 2007 में मूनि श्री सौरभ सागर महाराज जी की प्रेरणा द्वारा प्रतिष्ठित करवाई गई। चरण पादुकाओं के लिए 2014 में मन्दिर जी की परिक्रमा में चरण छत्री का निर्माण करवाया गया। समवशरण के सामने भव्य परिसर में 2014 को मानस्तम्भ का निर्माण करवाया गया। 2014 में पूर्वनिर्मित भवन में मन्दिर जी के साथ क्षेत्रपाल बाबा व पद्मावती माता जी की प्रतिमाओं को नवनिर्मित वेदी पर स्थापित करवाया गया। हरियाणा प्रान्त में जहाजपुल मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र के नाम से हिसार की पहचान है। समाज का यह दायित्व है कि इस ऐतिहासिक प्राचीन मन्दिर की प्राचीनता को बनाए रखने में सहयोग करें ताकि भगवान के समवशरण की प्राचीन वास्तुकला की पहचान बनी रहे।


कथा अतिशय की

नगर के पुण्य योग से परम पूज्य आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज के सुयोग्य, प्रभावक, ज्ञानयोगी शिष्य पूज्य मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज का वर्ष 2007 का चार्तुमास होना ही हिसार नगर के लिए कल्याणकारी सिद्ध हुआ। एक दिन मुनिश्री जी, जहाजपुल दर्शनार्थ पधारे, प्रांगण को गहराई से देखा तथा कुछ स्थान पर दोष होने का संकेत देते हुए मुख्य द्वार को उत्तर की ओर खोलने व प्रांगण में मानस्तम्भ की स्थापना करने की प्रेरणा दी। दिनांक 29 अक्तूबर को मन्दिर जी का 23 घंटे का अखण्ड पाठ मुनिश्री के सान्निध्य में प्रारम्भ किया गया। दूसरी और मानस्तम्भ निर्माण हेतु नींव की खुदाई भी प्रारम्भ हुई। जे.सी.बी. की मशीनें खुदाई कर रही थी और बड़े-बड़े पत्थर निकल रहे थे। अचानक रात्रि के समय मशीनें खुदाई करने में असफल हो गई। कार्य रुक गया, मुनिश्री को त्रैलोक सम्पदा भुगर्भ में होने का अदृश्य संकेत मिला। परिसर का कोना-कोना छाना गया ध्यान में लवलीन पूज्य मुनिश्री पुनः अपनी साधना में मग्न हो गए।

30 अक्टूबर को प्रातः कल्याण मन्दिर जी की पूजा प्रारम्भ हुई तो दूसरी और मजदूरों के द्वारा खुदाई करने में व्यस्त अचानक ठीक प्रातः 8 बजकर 5 मिनट पर भगवान पार्श्वनाथ जी की 1074 वर्ष प्राचीन, भगवान आदिनाथ जी की 978 वर्ष प्राचीन तथा भगवान महावीर स्वामी जी की 962 वर्ष पूर्व की 1 इंच की श्वेत पाषाण की मनोहारी आकर्षक, अतिशय युक्त लोक सम्पदा प्रतिमा प्रकट हुई। भूगर्भ से प्रकट होते ही सारा पण्डाल जय जयकार के जयघोष से गूंज उठा। पूज्य मुनिश्री अपनी साधना को विराम देकर तुरन्त पण्डाल में पधारे। अपने दोनों कमल रूपी नैनो से प्रतिमा को निहारा और वंदना की। मुनिश्री ने इस अवसर पर जैन समाज को अपने आशीबंधन से सम्बोधित करते हुए कहा कि जब भगवान जिनेन्द्र जी की प्रतिमाएँ भूगर्भ से प्रगट होती है उस क्षेत्र का कल्याण अवश्य होता है। धर्म प्रभावना होने से वहाँ प्रगति होती है तथा जन कल्याण कार्य होने लगते हैं। ये लोक सम्पदा अत्यन्त प्राचीन होने के साथ आकर्षक, मनोज है व अतिशय युक्त हैं। यह प्राचीन धर्म स्थल अभी तक उदासीन अवस्था में रहा परन्तु अब यह हरियाणा प्रान्त का अतिशय क्षेत्र बन गया है।

इस अवसर पर मुनिश्री ने अपने सम्बोधन में इस क्षेत्र को मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र के नाम से उद्घोषित किया तथा नवम्बर को महत गुरु पुष्य योग में तीनों प्रतिमाओं का 1008 रजत कलशों से भक्तिभाव व पूर्ण श्रद्धा से श्रावकों ने अभिषेक कर समवशरण में विराजित किया। इस शुभ अवसर उपरांत हरियाणा का हिसार नगर अब अतिशय क्षेत्र बन गया।


जैन समाज एवं सुविधाए

हिसार में 250 से 300 दिगम्बर जैन परिवार का समाज है। दिगम्बर जैन समाज द्वारा ही मंदिर जी के संचालन का कार्य होता है। क्षेत्र में स्थित श्री दिगम्बर जैन मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र के संचालन कार्य क्षेत्र में ही स्थापित बड़ा जैन मंदिर समिति द्वारा किया जाता है। मंदिर जी में आने वाले यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था भी समिति द्वारा करवाई जाती है। भोजनालय की व्यवस्था भी क्षेत्र में उपलब्ध है। मंदिर जी में ही वाहनों की पर्किंग की सुविधा भी उपलब्ध है।


क्षेत्र के बारे में (प्राचीन जैन नगरी इस्सूकार-आज का हिसार)

प्राचीन शास्त्र उत्तराध्ययन सूत्र में इस्सूकार नगर का कई बार नाम आया है। संस्कृत के विद्वान एवं प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का मानना है कि जैन आगम के इस प्राचीन शास्त्र में वर्णित इस्सूकार नगर ही आज का हिसार नगर है। दिल्ली से उत्तर-पश्चिम का क्षेत्र भ्रमण संस्कृति से प्रभावित रहा है तथा 2600 वर्ष पूर्व भगवान महावीर स्वामी मगंध प्रान्त से विहार कर सिंधु सोमवीर पधारे थे। भगवान महावीर उस समय इस्सूकार नगर भी आये थे तथा इस नगर में 6 जिनेश्वरी दीक्षाएं भी हुई थी। इस की पुष्टि जैन विद्वान व शिक्षाविद् डा० हिम्मतसिंह जैन ने भी की है। शास्त्रों में यह भी उल्लेख आता है कि हिसार के निकट का क्षेत्र भिवानी, दादरी, महेन्द्रगढ़ आदि राजा वर्धन के समय राजपूत जैन बाहुल्य रहा है। इसी का ही परिणाम है कि इस निकटवर्ती क्षेत्र में समय-समय पर भूगर्भ से तीर्थकरों की प्रतिमाएँ प्रकट होती रही है।


समिति

श्री दिगम्बर जैन मनहर पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र एक जैन धरोहर होने के नाते जैन समाज में मुख्य स्थान रखता है। मंदिर जी के संचालन हेतु श्री दिगम्बर जैन हिसार समिति का निर्माण किया गया है। श्री दिगम्बर जैन समिति हिसार द्वारा ही क्षेत्र में स्थित बड़ा जैन मंदिर जी का संचालन कार्य किया जाता है। समिति के सदस्य इस प्रकार है -

अध्यक्ष - श्री संजीव जैन जी

कोषाध्यक्ष - श्री अमित जैन जी

कार्यकर्त्ता - श्री प्रदीप जैन जी


नक्शा