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पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर जगाधरी
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एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का गर्भगृह 250 वर्ष प्राचीन है
  • स्थान
    नजदीक खेड़ा बाजार, जगाधरी बस स्टैण्ड से 2 किलोमीटर की दूरी पर, हरियाणा
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 5:30 बजे से 10:30 बजे
जगाधरी जैन मंदिर परिचय
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धार्मिक लोगों द्वारा प्रतिष्टित लगभग 250 वर्ष प्राचीन श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर है। यह मंदिर जगाधरी के श्री खेड़ा मंदिर के पृष्ठभाग की गली में स्थित है। यह मंदिर जितना प्राचीन है इतिहास भी अति प्राचीन है। उस समय मंदिर जी में श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ जी की अष्टधातु की 500 वर्ष प्राचीन प्रतिमा विराजमान थी।

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मूल वेदी का वर्णन : आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व मंदिर का श्री विकास होता गया और श्री 1008 भगवान आदिनाथ जी की समवशरण वेदी का भव्य निर्माण हुआ तथा भूतल से 108 फुट ऊँचा दृष्टिनंदन शिखर बना। श्री 1008 भगवान आदिनाथ जी की बाईं तरफ श्री 1008 भगवान शांतिनाथ जी की वेदी का निर्माण हुआ। 1964 में श्री 1008 भगवान आदिनाथ जी की वेदी के दाहिने और श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी जी की वेदी की स्थापना की गई।

भगवान आदिनाथ जी का समवशरण वेदी के नीचे वर्गाकार आकार पर बना हुआ है। उसके ऊपर अष्टकोणीय गोलाकार तीन करनी बनी हुई है, जिसके ऊपर गंधकुटी की रचना की हुई है, जिसके चारो कोणों से देवतागण चंवर झूला रहे है। गन्धकुटी के ऊपर शिखर बना हुआ है। इस गन्धकुटी में श्री आदिनाथ भगवान जी की आकर्षक पाषाणमयी प्रतिमा जी ऐसे विराजमान है जैसे देवादिदेव भगवान आदिनाथ स्वयं ही सिद्धलोक से आकर यहाँ पर विराजमान हो गए हो। भगवान आदिनाथ त्रिलोक - भूलोक, मध्यलोक और उधर्वलोक के नाथ है। इसका एक प्रतीक स्वर्णमयी तीन छत्र बृहत, मध्यम और लघु भगवान के शीष पर अपनी समुज्ज्वल छठा बिखेर रहा है जैसे मनमोहक, दर्शनीय, जीवन्त प्रतिमा अनुभूत होती है तथा उनके पृष्ठभाग में सात भवो का ज्ञान कराने वाला भावमण्डल रखा हुआ है। इसके प्रभाव से भक्तजन भगवान आदिनाथ जी के दुर्लभ दर्शन करते ही अपने सांसारिक कष्टों से तुरंत मुक्ति का अनुभव करते है |

पूर्वोतर में भगवान आदिनाथ के सामने उन्ही के प्रिय भक्तो ने दिनांक 29 नवंबर 2017 से दिनांक 17 जनवरी 2018 तक वात्सल्य मयीमूर्ति, ज्ञान-सरिता, मृदुभाषी, बाल ब्रहमचारिणी सुनीता दीदी एवं स्वर कोकिला बाल ब्रहमचारिणी लीला दीदी के निर्देशन में (प्रथम बार 48 दिवसीय) तथा आचार्य श्री मानतुङ्ग द्वारा रचित श्री भक्तामर महामण्डल विधान के सामने 40 दिवसीय अलौकिक भक्ति तथा प्रभु का गुणगान व वंदन किया।

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अन्य वेदी का विवरण : भगवान आदिनाथ जी की बायीं तरफ श्री 1008 भगवान शान्तिनाथ जी की वेदी में नासादृष्टि, शान्तमूर्ति, देवादिदेव भगवान शान्तिनाथ जी, भगवान महावीर स्वामी जी व भगवान नेमिनाथ जी की प्रस्तर निर्मित प्रतिमा व बाहुबली भगवान जी की खड्गासन प्रतिमा तथा अष्टधातु से निर्मित पार्श्वनाथ भगवान, अनन्तनाथ भगवान एवं चंद्रप्रभ भगवान जी की प्रतिमाएँ विराजमान है। आप सिद्ध परमेष्ठि के भी साक्षात् रूप से दर्शन कर सकते है। भगवान आदिनाथ जी की दाईं तरफ श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी जी की वेदी है, जिसमे पषाणनिर्मित श्री महावीर एवं श्री शान्तिनाथ भगवान जी की प्रतिमाएँ विराजमान है तथा उनके आगे श्री आदिनाथ जी भगवान, श्री महावीर भगवान जी की अष्टधातु की प्रतिमा भी विराजमान है।


जगाधरी का इतिहास

हरियाणा राज्य के पूर्व प्रान्त में उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल से लगता जिला यमुनानगर है। यह नगर यमुना नदी के किनारे पर स्थित है, अतः इसका नाम यमुनानगर पड़ा। यमुनानगर रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी की दूरी पर इस्पात नगरी, बर्तन बाजार नाम से प्रसिद्ध जगाधरी नगरी है। बुड़िया की रानी व्यापार को बढ़ाने के लिए और शहर बसाने के लिए व्यापार करने के इच्छुक लोगो को सामान जगह दी। स्थानीय भाषा में जंगा धरी थी। जंगा अर्थात जगह स्थान और धरी अर्थात रखा गया, जिसका विकृत रूप जगाधरी है। जगाधरी नगर एक औधोगिक क्षेत्र है एवं लोग अत्यंत धार्मिक है।


जगाधरी जैन समाज

जगाधरी का जैन समाज साधु / साध्वी के प्रति श्रद्धाशील, धर्मपरायण एवं कर्तव्यपरायण है। यहाँ हमेशा साधुओं का समागम होता रहता है। सन् 1975 में तत्कालीन उपध्याय व वर्तमान आचार्य श्री विद्यानन्द जी का चातुर्मास हुआ था। सन् 1979 में आचार्य श्री शान्ति सागर जी हस्तिनापुर वालो का संसंध जगाधरी में प्रवास किया। सन् 1980 में क्षुल्लक सन्मति सागर जी का चातुर्मास हुआ था तथा उसी समय 'श्री' की शोभायात्रा के लिए रथयात्रा की नींव रखी गयी थी। सन् 1982 में बालयोगिनी माँ श्री कौशल जी का चातुर्मास भी जगाधरी में हुआ था।

जगाधरी की यात्रा करने वाले संतों के नोट्स वर्ष
बाल ब्रहाचारिणी सुनीता दीदी बाल ब्रहाचारिणी लीला दीदी  
मुनि श्री 108 जीवधर सागर जी 1985
मुनि श्री 108 वर्धमान सागर जी 1985
क्षुल्लक श्री 105 कुलभूषण जी महाराज 1986
अर्थिका रतन 105 सृष्टिभूषण माता जी 2000
अर्थिका रतन 105 स्वस्ति भूषण माता जी 2000
मुनिश्री सौरभ सागर जी महाराज 2001
मुनिश्री प्रबल सागर जी महाराज 2001
आर्थिका शिरोमणि 105 सरस्वती भूषण माता जी 2002
आचार्य श्री 108 सन्मति सागर जी महाराज 2003
मुनिश्री गुप्तिसागर जी महाराज 2004
मुनिश्री नयनसागर जी महाराज 2005
मुनिश्री प्रबुद्धसागर जी महाराज 2006
मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज 2007
मुनि श्री प्रबल सागर जी महाराज 2007
आर्थिका 105 स्वस्ति भूषण माता जी 2008
एल्लक श्री संकल्प सागर जी महाराज 2009
मुनिश्री विशोक सागर जी महाराज 2009
मुनि श्री सिद्धांत सागर जी महाराज 2011
मुनिश्री श्री प्रमुखसागर जी महाराज 2014
मुनि श्री उत्तमसागर जी महाराज 2015
श्री तरुण सागर जी महाराज जी
(राष्ट्र के पूज्य संत)
2016 (16 दिन)
बाल ब्रहाचारिणी सुनीता दीदी जून 2017 (10 दिन)
बाल ब्रहाचारिणी लीला दीदी नवंबर 2017 (50 दिन)

जगाधरी से त्यागी व्रती

दीक्षा गुरु आचार्य श्री 105 सनमती सागर जी महाराज के मार्गदर्शन में भगवान महावीर द्वारा दी गई मुक्ति की राह पर चलने वाले जगाधरी के लोग निम्नलिखित हैं:

  • भगत सुमेर चंद जी वर्णी - सप्तम प्रतिमाधारी
  • बाबू श्री चन्द्रसेन जैन जी - सप्तम प्रतिमाधारी
  • व्रती श्री पुरुषोत्तम दास जैन जी - सप्तम प्रतिमाधारी
  • क्षुल्लिका भक्ति भूषण माता जी

धर्म प्रभावना

इस तरह धर्मनगरी जगाधरी में हमेशा ही अलौकिक धर्म प्रभावना रही है। नगर के लोग बड़े उत्साह-उमंग के साथ अंशग्रहण कर धर्मलाभ उठाते है एवं आशीर्वाद प्राप्त करके अपने आप को धन्य मानते है। विशेषकर साल में तीन उत्सव अत्यंत धूमधाम से मनाये जाते है। श्री महावीर जयंती, दसलक्षण पर्व, अनन्त चतुर्दशी पर्व व क्षमावाणी पर्व एवं भगवान आदिनाथ निर्वाण महोत्सव। इन तीनो पर्व पर सम्पूर्ण समाज का सामूहिक भोज होता है। धर्म प्रचार के लिए समय-समय पर जगाधरी के जैन समाज द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। सन् 1986 में प्रथम बार गजरथ महोत्सव तथा महावीर जयंती के अवसर पर सिद्ध चक्र विधान हुआ तथा श्री जी की शोभायात्रा को नगर में भ्रमण करवाया गया। इसी साल दसलक्षण पर्व पर्यूषण में पहली बार इन्द्रध्वज महामण्डल विधान करवाया गया। 1987 में तीन लोक महामण्डल विधान, सन् 1988 में कल्प द्रुम विधान, सन् 1989 में श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान किया गया तथा आगे भी दसलक्षण पर्व पर कोई न कोई बड़ा विधान होता रहता है। इसके अतिरिक्त सन् 1988 से सन् 1991 तक लगातार तीन साल तीर्थयात्रा के लिए बस का प्रबंध किया गया। यह सिलसिला 2014 से पुनः शुरू हुआ, जब विभिन्न तीर्थो के लिए बस की गई। जैन धर्म के विस्तार के लिए सन् 1986 से लेकर आज तक हर वर्ष जैन धर्म के बच्चो तक पहुंचाने हेतु ज्ञानवर्धक प्रशिक्षण शिविरों का तथा धर्म प्रश्नोत्तरी का आयोजन बड़ी कुशलता पूर्वक चलाया जा रहा है। सन् 1961 से सन् 1970 तक जगाधरी में महावीर जयंती के अवसर पर दो दिवसीय धार्मिक कार्यक्रम, चौंक बाजार, जगाधरी में किए गए। जिसमें भारत के प्रसिद्ध धर्मप्रवाचक व मुख्य संगीत शिल्पी अपनी ओजस्वी वाणी व भजन से लोगो को प्रभावित व मंत्र मुग्ध करते रहे। आचार्य श्री मानतुंङ जी द्वारा श्री भक्तमार महामंडल विधान का आयोजन 48 दिनों तक, अर्थात 29 नवंबर 2017 से 17 जनवरी 2018 तक किया गया, जिसमें भगवान आदिनाथ जी के भक्तों ने वात्सल्य मूर्ति, ज्ञान सरिता, मृदुभाषी 'बाल ब्रह्मचारिणी' सुनीता दीदी और स्वर कोकिला बाल ब्रह्मचारिणी 'लीला दीदी के मार्गदर्शन में भक्ति की।