मंदिर जी का परिचय

श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर जी मुजफ्फरनगर तथा मीरपुर के बीच में नेशनल हाईवे 709 ए.डी. से 450 मीटर अंदर कवाल गाँव में स्थित है। मंदिर जी की ओर आते हुए बाहर मार्ग से ही हमें मंदिर जी का विशाल गुलाबी रंग का शिखर दिखाई देता है। शिखर द्वारा हमें मंदिर जी तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त होता है। मंदिर जी में मुख्य द्वार से प्रवेश करके सबसे पहले हमारे सामने बड़ा हॉल आता है जिसका उपयोग जैन रथ यात्रा समारोह, धार्मिक आयोजन एवं मुनि महाराज जी के प्रवचन के लिए किया जाता है। हॉल के बाद हम मंदिर जी के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। मंदिर जी में कुल तीन जिनेन्द्र भगवान और एक पद्मावती माता जी की वेदी विराजमान है। मंदिर जी के गर्भगृह को काँच के द्वारा निखारा गया है और उसके ऊपर की गई जैन चित्रकारी उसकी सोभा को और भी बड़ाती है।
मंदिर जी में स्थापित प्रतिमाओं को पास ही में खाई खेड़ा क्षेत्र में नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। मूल वेदी श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की है जिसमें अत्यंत दुर्लभ प्रतिमा जी विराजमान हैं। अधिकतम जैन मंदिरों में स्थापित श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के सिर के ऊपर नाग फण होता है लेकिन कवाल में स्थित मूल प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ भगवान जी के ऊपर कोई नाग का फण नहीं है और प्रतिमा सफ़ेद पाषाण से निर्मित हैं जो सम्भवता चतुर्थकालीन हो सकती है। मूल प्रतिमा जी के साथ श्री 1008 शांतिनाथ भगवान जी, श्री 1008 कुंथुनाथ भगवान जी, श्री 1008 आदिनाथ भगवान जी की अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान है।
मूल वेदी के दाई तथा बाईं ओर अन्य दो वेदिया है जिनमें भी प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान है और जिनेन्द्र भगवान जी की वेदियों के सामने हॉल की दूसरी ओर माता पद्मावती जी की वेदी भी स्थापित है जो अति प्राचीन है। मंदिर जी के पंडित जी बताते हैं कि यहाँ समय-समय पर अतिशय देखने को मिलते हैं। एक समय की बात है कि एक व्यक्ति मंदिर जी में प्रतिदिन आकर पूजा अर्चना करता था। वह व्यक्ति बहुत ही निर्धन था। वह प्रतिदिन मंदिर जी में आकर अपनी आर्थिक स्थिति में विकास के लिए प्रार्थना करता था। कुछ समय पश्चात मंदिर जी के अतिशय के कारण उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगा। मंदिर जी के पंडित जी स्वयं अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने पुत्र का नाम श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी के नाम पर पारस रखा है।
समाज एवं सुविधाएं
कभी 40 से 50 जैन परिवारों की जनसंख्या वाला क्षेत्र आज केवल 3 से 4 परिवारों तक रह गया है। जनसंख्या कम होने के बावजूद भी मंदिर जी में प्रतिवर्ष रथ यात्रा के महोत्सव पर 200 से 300 जैन लोगों का आगमन होता है। मंदिर जी में समय समय पर जैन साधु मुनियों का आगमन होता है तो उनके लिए 4 कमरों वाले साधु भवन का निर्माण किया गया है। साधु महाराज के लिए आहार एवं उनके अनुकूल सुविधाएं उपलब्ध है।
मुजफ्फरनगर क्षेत्र के बारे में
मुजफ्फरनगर का क्षेत्रफल 4049 वर्ग किलोमीटर है। मुजफ्फरनगर दिल्ली से लगभग 116 किमी दूर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है जिसकी सीमाएँ हरियाणा और राजस्थान से मिलती हैं। यह राष्ट्रीय राज मार्ग 58 पर सहारनपुर मण्डल के अंतर्गत गंगा और यमुना के दोआब में दक्षिण में मेरठ और उत्तर में सहारनपुर जिलों के बीच स्थित है। यह क्षेत्र विभिन्न धार्मिक स्थलों के लिए महत्वपूर्ण है। गंगा यमुना के संगम पर बसे इस क्षेत्र में कई तीर्थ स्थल हैं जैसे कि शुक्राताल, तांदा, अंबा बारा, भिट्ठौड़ा, और मन्दीरा घाट आदि। यहाँ के त्योहार और मेले भी अपने आप में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। इस ज़िले में कई प्राचीन राजमहल और राजा-महाराजा के महल हैं जो ऐतिहासिक महत्व के हैं और पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। यहाँ की हिंदी और उर्दू प्रमुख भाषाएँ हैं, लेकिन अन्य भाषाएँ भी यह पर बोली जाती हैं, जैसे कि हरियाणवी और राजस्थानी।
मुजफ्फरनगर एक महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर है चीनी, इस्पात, कागज और सिले सिलाये कपड़े और हाथ की कशीदाकारी से बने महिलाओं के सूट के लिए प्रसिद्ध है। गन्ना के साथ अनाज यहाँ के प्रमुख उत्पाद है। यहाँ की ज़्यादातर आबादी कृषि में लगी हुई है जो कि इस क्षेत्र की आबादी का 70% से अधिक है। मुजफ्फरनगर का गुड़ बाजार एशिया में सबसे बड़ा गुड़ का बाजार है। मुजफ्फरनगर में गन्ना भारत में सबसे अधिक पैदा होता है, गन्ने के मिल भी सबसे ज्यादा संख्या में मुजफ्फरनगर है।
समिति
कवाल क्षेत्र में जैन समाज कम होते हुए भी मंदिर जी का संचालन मंदिर समिति द्वारा सुचारु रूप से होता है। मंदिर समिति के सदस्य इस प्रकार है :-
अध्यक्ष - श्री आकाश जैन जी