मंदिर जी का परिचय

भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक के वैदवाड़ा क्षेत्र में श्री 1008 खंडेलवाल छोटा दिगंबर जैन मंदिर स्थित है। मंदिर जी तक पहुंचने का मार्ग तंग गलियों से होकर जाता है, इसलिए श्रद्धालु अपने वाहन को मुख्य सड़क के निकट स्थित पार्किंग में खड़ा करके मंदिर जी में दर्शन के लिए आ सकते हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण लगभग 150 वर्ष पूर्व स्थानीय निवासी श्री संतलाल गोधा जी द्वारा कराया गया था। यह तीन मंजिला भव्य जिनालय अपनी शिल्पकला एवं धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर जी के दूसरे तल पर स्थित मूलवेदी के दर्शन होते हैं, जिसका निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है। वेदी के चारों ओर तथा भावमंडल पर जिन भगवान, जिन रक्षक देव-देवियों, जैन तीर्थ वंदना तथा इंद्र-इंद्राणियों को भगवान जी की प्रतिमा पर चंवर डोलाते हुए दर्शाया गया है, जो मंदिर की दिव्यता को और अधिक बढ़ाता है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय इस क्षेत्र में जैन समाज के परिवारों की संख्या अधिक थी। उस समय, वेदी के ऊपर रत्नजड़ित चंदोवा प्रतिष्ठित था, जो मंदिर की भव्यता को और अधिक अलंकृत करता था। हालांकि, समाज की संख्या कम होने के कारण अब यह परंपरा बंद हो गई है।
मंदिर जी की मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की सफेद पाषाण से निर्मित पद्मासन प्रतिमा है, जिसके दर्शन से भक्तों को अद्भुत दिव्य शांति का अनुभव होता है। क्षेत्र में इस प्रतिमा का विशेष अतिशय माना जाता है। कहा जाता है कि जब भी आसपास कोई संकट आने वाला होता है, भगवान पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा पहले ही संकेत देकर आगाह कर देती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यदि कोई भक्त सच्चे हृदय से अपनी समस्या भगवान जी के समक्ष रखता है, तो उसकी समस्या का समाधान अवश्य हो जाता है। मंदिर के इतिहास से जुड़ा एक रहस्यमय प्रसंग भी प्रसिद्ध है। पहले इस प्रतिमा को मंदिर की वेदी में स्थापित करने का कई बार प्रयास किया गया, लेकिन यह स्थिर नहीं रह पाती थी, मानो कोई अदृश्य शक्ति इसे वहाँ टिकने नहीं दे रही हो। इसके बाद, परम श्रद्धेय श्री 108 देश भूषण जी महाराज का आगमन हुआ। अपनी दिव्य दृष्टि से उन्होंने इस अनोखी प्रतिमा को निहारा और घोषणा की "यह कोई साधारण प्रतिमा नहीं, बल्कि अति विशेष एवं चमत्कारी है!" गहन चिंतन एवं आध्यात्मिक साधना के उपरांत, महाराज जी ने वेदी के नीचे नौ रत्न स्थापित करने का निर्णय लिया। जैसे ही यह पावन अनुष्ठान पूर्ण हुआ, प्रतिमा स्थायी रूप से अपनी वेदी पर अडिग हो गई। तब से लेकर आज तक, यह प्रतिमा अटूट श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बनी हुई है और भक्तों को अपने दिव्य प्रभाव से अनुग्रहित कर रही है।
मूलनायक प्रतिमा जी के अतिरिक्त वेदी में अन्य तीर्थंकर भगवान जी की भी प्रतिमाएँ विराजमान हैं, जो पाषाण, अष्टधातु एवं स्फटिक से निर्मित हैं। इनमें मूल प्रतिमा के साथ श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी एवं श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान जी की मुखिया प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। इसके अलावा, वेदी में स्फटिक से निर्मित श्री 1008 महावीर भगवान जी की प्रतिमा तथा अष्टधातु से निर्मित चौबीसी और पंचबालयति तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ भी सुशोभित हैं। मंदिर जी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक माह मंदिर जी में णमोकार मंत्र का सामूहिक पाठ किया जाता है। प्रतिवर्ष भव्य शोभा यात्रा बड़ा मंदिर जी से प्रारंभ होकर छोटे मंदिर जी तक पहुंचती है, जहां श्रीजी की प्रतिमा को विधिवत स्थापित किया जाता है। इसके पश्चात, यात्रा पुनः आरंभ होकर संपूर्ण क्षेत्र की परिक्रमा पूर्ण करते हुए बड़ा मंदिर जी में सम्पन्न होती है। वर्तमान समय में भी मंदिर जी से जुड़े श्रद्धालु नियमित रूप से पूजा-अर्चना एवं प्रक्षालन के कार्यों में संलग्न रहते हैं।
जैन समाज एवं सुविधाए
दिल्ली के चांदनी चौक स्थित वैदवाड़ा क्षेत्र में, इस मंदिर जी से कुछ दूरी पर ही श्री खंडेलवाल दिगंबर जैन बड़ा मंदिर विधिमान है। चांदनी चौक में समय-समय पर जैन साधु-साध्वियों का आगमन होता रहता है, और वे श्री खंडेलवाल दिगंबर जैन छोटा मंदिर जी के दर्शन के लिए अवश्य पधारते हैं। चांदनी चौक क्षेत्र में आचार्य महाराज एवं अन्य संतों के आगमन पर उनके आहार एवं विश्राम की समुचित व्यवस्था हेतु संत भवन का निर्माण किया गया है। साथ ही, दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में एक धर्मशाला भी निर्मित की गई है, जहाँ यात्रियों को मात्र 100 से 150 रुपये के नाममात्र शुल्क पर ठहरने की सुविधा प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त, धर्मशाला का उपयोग विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए भी किया जाता है।
दिल्ली क्षेत्र के बारे में
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी और एक केंद्र-शासित प्रदेश है। भारत की राजधानी होने के कारण केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों- कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय दिल्ली में ही स्थापित हैं। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है, और पुराणों में इसका विशेष महत्व है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं।
दिल्ली का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत महापुराण में मिलता है जहाँ इसका उल्लेख प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के रूप में किया गया है। इन्द्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। दिल्ली केवल भारत की राजधानी ही नहीं अपितु यह एक पर्यटन का मुख्य केन्द्र भी है। राजधानी होने के कारण भारत सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं; प्राचीन नगर होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, जंतर मंतर, क़ुतुब मीनार और लौह स्तंभ जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केन्द्र समझे जाते हैं। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं जैसे बिरला मंदिर, कात्यायिनी शक्तिपीठ, लाल जैन मंदिर, बंगला साहब गुरुद्वारा, बहाई मंदिर, अक्षर धाम मंदिर और जामा मस्जिद देश के शहीदों का स्मारक इंडिया गेट, राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। वर्तमान समय में दिल्ली सम्पूर्ण भारत के व्यापार का मुख्य केंद्र बन चूका है।
समिति
बिना किसी समिति का गठन किए, मंदिर का संचालन परिवार के सदस्य एवं स्थानीय समाज द्वारा किया जाता है। वर्तमान में कार्यरत सदस्य इस प्रकार हैं -
श्री नगीन चन्द गोधा जी
श्रीमती कल्पना तिवारी जी
श्री प्रमोद चन्द गोधा जी