महलका मंदिर जी परिचय

दिल्ली से लगभग 130 किलोमीटर तथा मेरठ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, श्री 1008 दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, महलका। महलका पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गांव है। पहले मंदिर जी के स्थान पर चैत्यालय बना हुआ था। चैत्यालय में प्राचीन 108 नागफणी श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा स्थापित थी। लेकिन वर्तमान समय में मंदिर जी को चन्द्रांचल महलका के नाम से जाना जाता है। मंदिर जी में 108 फुट ऊँचा जिनालय बना हुआ है, जो बिना किसी नींव के है। मंदिर जी में विराजमान है, आठवें तीर्थंकर श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान जी की प्राचीन प्रतिमा, जो भूमि से प्रकट हुई थी। मंदिर जी में 5 वेदिया स्थापित है, जिनमें से मूल वेदी में श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, दूसरी वेदी में श्री 1008 नेमिनाथ भगवान जी की, तीसरी वेदी में श्री 1008 महावीर भगवान जी की, चौथी वेदी में श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी की तथा पाँचवी वेदी में तीन वेदिया बनी हुई है जिनमे श्री 1008 शीतलनाथ भगवान जी, श्री 1008 पद्मप्रभु भगवान जी व श्री 1008 वासुपूज्य भगवान जी की प्रतिमाएँ स्थापित है। मंदिर जी में श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की प्राचीन प्रतिमा के साथ अन्य कई प्राचीन प्रतिमाएँ भी स्थापित है।
कथा अतिशय की
लगभग 200 वर्ष पहले ब्रिटिश शासन के दौरान सरधना में मुगल बेगम सुमरू का राज्य था। उस समय गंग नहर की खुदाई का कार्य चल रहा था। खुदाई के दौरान भगवान चन्द्रप्रभु जी की चतुर्थ कालीन पद्मासन अवस्था वाली सफेद पाषाण से बनी प्रतिमा प्राप्त हुई। सुमरु बेगम के एक सलाहकार ने कहा की जहाँ यह प्रतिमा रहेगी वहाँ पर जैन धर्म का राज्य होगा। बेगम ने जैन समाज के विद्वानों को बुलाकर प्रतिमा को राज्य के बाहर ले जाने को कहा। जैन समाज द्वारा प्रतिमा को बैलगाड़ी पर रखकर ले जाया गया। बैलगाड़ी ठीक से चल ही रही थी की मार्ग में महलका पहुँचने पर अचानक ही बैलगाड़ी रुक गई। लोगो ने बहुत प्रयास किया लेकिन बैलगाड़ी अपनी जगह से आगे बढ़ने को तैयार नहीं थी। वहीं पर भगवान पार्श्वनाथ का चैत्यालय था। भगवान चन्द्रप्रभु जी की प्रतिमा को उसी चैत्यालय में विराजमान करने को जैसे ही उठाया, प्रतिमा का भार कम हो गया। तत्पश्चात् प्रतिमा को चैत्यालय में विराजमान किया गया। वर्तमान समय में चैत्यालय एक भव्य मंदिर जी का रूप ले चुका है। उस दिन से लेकर वर्तमान समय में प्रतिमा जी का कई बार रंग बदलना देखा गया है। यह प्रतिमा जी का अतिशय ही है की यदि महलका की सीमा में किसी को सर्प दंश हो जाता है तो वह व्यक्ति मरता नहीं है।
सुविधाएं एवं धर्मशाला
मंदिर जी के आस-पास केवल तीन से चार जैन परिवारों का ही जैन समाज है लेकिन संख्या में कम होने के बावजूद भी जैन समाज द्वारा मंदिर जी का संचालन सुचारु रूप से होता है। मंदिर जी में दूर से आने वाले यात्रियों के लिए धर्मशाला का प्रबंध बना हुआ है। धर्मशाला में भोजनालय की व्यवस्था भी बनी हुई है। क्षेत्र में ही औषधालय का निर्माण भी किया गया है।
मेरठ क्षेत्र के बारे में
दिल्ली से मेरठ की दूरी लगभग 70 किलोमीटर है। जनसँख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का यह पाँचवाँ सबसे अधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र है। कानपूर के बाद सैन्य छावनी में मेरठ दूसरे अंक पर आता है। मेरठ को स्पोर्टस सिटी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी सीमाएँ गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर तथा बुलंद शहर से लगती है। मेरठ का इतिहास महाभारत काल से भी रहा है। महाभारत में मेरठ को मायाराष्ट्र कहा जाता था। सन 1857 की क्रांति में शहीद हुए क्रांतिकारियों की याद में यहाँ शहीद स्मारक स्थापित है। भारत में कैंची का निर्यात मेरठ से ही होता है। मेरठ में जम्बूद्वीप मंदिर, अष्टापद मंदिर तथा भगवान शांतिनाथ मंदिर अन्य कई जैन मंदिर स्थापित है।
समिति
श्री दिगम्बर जैन मंदिर प्रबंध समिति, महलका द्वारा ही मंदिर जी के संचालन का कार्य किया जाता है। समिति के सदस्य इस प्रकार है -
अध्यक्ष - श्री सुखदीश प्रसाद जैन
मंत्री - श्री अशोक कुमार जैन