महिला समाज दिगंबर जैन मंदिर, सतघरा
-mahila-samaj-jain-mandir-satghara-.jpg

एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर महिला समाज, सतघरा
  • निर्माण वर्ष
    सन् 1903 में चैत्यालय की स्थापना / सन् 1940 में शिकार बंद मंदिर में परिवर्तित
  • स्थान
    श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर जी 2558, सतघरा, धरमपुरा, दिल्ली 6
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
मंदिर जी का परिचय
-mahila-samaj-jain-mandir-satghara-.jpg

भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित चांदनी चौक क्षेत्र का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इसी क्षेत्र के धरमपुर इलाके की गली सतघरा में स्थित श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो 125 वर्षों से अधिक पुराना है। यह मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के बीच एक विशेष स्थान रखता है, क्योंकि पहले इस मंदिर का संचालन महिला समाज द्वारा किया जाता था, जिसके कारण इसे "श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर महिला समाज" के नाम से जाना गया।

महिला समाज की एक प्रमुख महिला, जो इस मंदिर के संचालन की जिम्मेदारी संभालती थीं और बाद में जैन दीक्षा लेकर साध्वी भी बनीं। उनके निधन के बाद, मंदिर के संचालन के लिए एक नई समिति का गठन किया गया। वर्तमान में, इस मंदिर का संचालन श्री प्रदीप कुमार जैन के द्वारा किया जा रहा है, जो सतघरा दिगंबर जैन मंदिर के प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। इसके बावजूद, आज भी मंदिर के सभी धार्मिक आयोजनों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और नेतृत्व नजर आता है, जो इसके समृद्ध और विविध सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं। श्री प्रदीप कुमार जैन ने मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया कि पहले इस मोहल्ले में सात जैन परिवार निवास करते थे, जिसके कारण इसे "सतघरा" के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि, समय के साथ कुछ परिवार अन्य स्थानों पर बस गए हैं, और वर्तमान में इस मोहल्ले में केवल तीन से चार जैन परिवार ही शेष रह गए हैं।

मंदिर के निर्माण के संदर्भ में, सबसे पहले 1903 में यहाँ चैत्यालय की स्थापना की गई थी, और समय के साथ, 1940 में इसे शिकार बंद मंदिर के रूप में पुनर्विकसित किया गया। जैसे ही आप मंदिर में प्रवेश करते हैं, आपको मंदिर के भीतर स्थित लघु मनसा स्तंभ के दर्शन होते हैं, जिसे प्रारब्ध से यहाँ स्थापित किया गया है। वर्तमान में मंदिर में पांच वेदियाँ स्थापित हैं। मुख्य वेदी 23वें तीर्थंकर, श्री पार्श्वनाथ भगवान की है, जिसमें उनकी मूलनायक प्रतिमा काले पाषाण से पद्मासन अवस्था में विराजमान है। मुख्य प्रतिमा के साथ ही श्री चंद्रप्रभु भगवान, श्री नेमिनाथ भगवान, श्री शांतिनाथ भगवान और श्री महावीर भगवान की पाषाण से निर्मित प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त, चांदी से निर्मित चौबीसी, रत्नों से बनी 24 भूतकाल के तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ, अन्य रत्नों की प्रतिमाएँ और प्राचीन प्रतिमाएँ भी यहाँ स्थित मंदिर की वेदियों में दर्शनीय हैं। मंदिर के प्रत्येक कोने में अद्वितीय जैन चित्रकला की झलक देखने को मिलती है, जो मंदिर की दीवारों पर एक दिव्य और भव्य वातावरण बनती है। इन चित्रकलाओं में रंगों को जीवंत और चमकदार बनाने के लिए रत्नों के चूरे और सोने का भी प्रयोग किया गया है, जिससे उनकी सुंदरता और आकर्षण और भी बढ़ जाता है।


जैन समाज एवं सुविधाएँ

दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में कुल 11 जैन मंदिरों का एक समूह स्थित है, जिसमें श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर महिला समाज भी शामिल है। यह मंदिर 2558, सतघरा, धरमपुरा में स्थित है और विजय गोयल की हवेली के पास तथा प्रसिद्ध जामा मस्जिद के निकट है, जिससे इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। यह मंदिर प्राचीन दिगंबर जैन वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें अत्यंत पुरानी और मनमोहक प्रतिमाएं स्थापित हैं। यहाँ की शांतिपूर्ण और दिव्य वातावरण में दर्शन करने से एक विशेष ऊर्जा और मानसिक शांति का अनुभव होता है।

इस मंदिर के पास 3 से 4 जैन परिवारों का समाज समाहित है, और प्रतिदिन लगभग 25 से 30 लोग नियमित रूप से दर्शन के लिए आते हैं। अभिषेक और शांतिधारा प्रमुख रूप से समाज के निवासियों द्वारा किए जाते हैं, जिनमें श्री विवेक जैन, श्री मोनू जैन, श्री अतुल जैन, श्री मनोज जैन, श्री विक्रांत जैन, श्री अक्षत जैन और अन्य भक्तों का योगदान शामिल है। मंदिर के आयोजनों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी विशेष रूप से अधिक रहती है। वे न केवल पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होती हैं, बल्कि मंदिर की अन्य गतिविधियों, जैसे निर्वाण लाडू बनाने और सजावट में भी अहम भूमिका निभाती हैं। यहाँ पर जैन धर्म के सभी प्रमुख पर्व, विशेषकर 24 तीर्थंकरों के जन्म और मोक्ष कल्याणक, अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं। जब भी मुनि महाराज जी का चांदनी चौक क्षेत्र में आगमन होता है, तो वे यहाँ मंदिर जी में अवश्य पधारते हैं। हालांकि, मंदिर परिसर में मुनि महाराज के रुकने के लिए कोई विशेष व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।


दिल्ली क्षेत्र के बारे में

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी और एक केंद्र-शासित प्रदेश है। भारत की राजधानी होने के कारण केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों- कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय दिल्ली में ही स्थापित हैं। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है, और पुराणों में इसका विशेष महत्व है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं।

दिल्ली का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत महापुराण में मिलता है जहाँ इसका उल्लेख प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के रूप में किया गया है। इन्द्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। दिल्ली केवल भारत की राजधानी ही नहीं अपितु यह एक पर्यटन का मुख्य केन्द्र भी है। राजधानी होने के कारण भारत सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं; प्राचीन नगर होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, जंतर मंतर, क़ुतुब मीनार और लौह स्तंभ जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केन्द्र समझे जाते हैं। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं जैसे बिरला मंदिर, कात्यायिनी शक्तिपीठ, लाल जैन मंदिर, बंगला साहब गुरुद्वारा, बहाई मंदिर, अक्षर धाम मंदिर और जामा मस्जिद देश के शहीदों का स्मारक इंडिया गेट, राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। वर्तमान समय में दिल्ली सम्पूर्ण भारत के व्यापार का मुख्य केंद्र बन चूका है।


समिति

श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर के सभी धार्मिक कार्य और अनुष्ठान स्थानीय जैन समाज और मंदिर के भक्तों द्वारा मिलकर सम्पन्न किए जाते हैं। यह मंदिर चांदनी चौक स्थित अन्य मंदिरों की पञ्चायती समिति के अंतर्गत नहीं आता है। मंदिर की गतिविधियाँ स्थानीय समुदाय के सामूहिक प्रयासों से निर्बाध रूप से संचालित होती हैं। मंदिर की देख-रेख के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा नियुक्त किए गए प्रबंधक मंदिर की कार्यवाहियों को सुचारू रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनका नाम इस प्रकार है :

प्रबंधक - श्री प्रदीप कुमार जैन