मंदिर जी का परिचय

श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हरियाणा राज्य के जिला नूंह में पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर मांडीखेड़ा गांव में स्थित है। मंदिर जी का निर्माण आज से 300 वर्ष पूर्व जैन समाज द्वारा करवाया गया था। मंदिर जी में मूलतः एक वेदी है। वेदी में मूलनायक श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की लघु प्रतिमा है। एक समय वेदी में कुल सात प्रतिमाएँ हुआ करती थी लेकिन वर्ष 1947 में देश विभाजन के समय हिंसा का वातावरण बना हुआ था जिस कारण एक-एक करके सभी प्रतिमाओं को उठाकर तीन किलोमीटर की दूरी पर नगीना क्षेत्र पर विराजमान कर दिया गया, जो आज भी नगीना मंदिर जी में विराजमान है। लेकिन जब श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा को उठाने लगे तो प्रतिमा जी अपनी जगह से हिली भी नहीं, जिस कारण प्रतिमा जी को मंदिर जी में ही विराजमान रहने दिया गया। श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की इस प्रतिमा जी पर उत्तीर्ण सम्वत के अनुसार यह प्रतिमा नो सौ वर्ष से भी अधिक प्राचीन बताई जाती है। एक समय यहाँ जैन समाज के कई परिवार हुआ करते थे, धीरे-धीरे क्षेत्र से जैन परिवारों का रुख शहरों की ओर हो गया। वर्तमान समय में मांडीखेड़ा में केवल एक दिगम्बर जैन परिवार है। इसी परिवार द्वारा ही मंदिर जी का संचालन किया जाता है। जो परिवार यहाँ से पलायन कर गए थे वे वापिस नहीं लौटे है तथा जो लोग यहाँ से गए थे एवं जो लोग प्रतिमा जी के अतिशय के बारे में जानते है वे लोग ही मंदिर जी में आते है। मंदिर जी में एक भंवरा भी हुआ करता था जिसे समय के साथ बंद कर दिया गया है। बताया जाता है कि भंवरे में से कई बार नाग देवता को निकलते हुए देखा गया लेकिन आज तक नाग देवता द्वारा किसी को भी कुछ हानि नहीं पहुंचाई है।
अतिशय की कथा
बात है 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान विभाजन की। उस समय पूरे भारत वर्ष में हिंसा का वातावरण बना हुआ था। मंदिर जी की वेदी में कुल सात जिनेन्द्र भगवान जी की प्रतिमाएँ विराजमान थी। जैन समाज ने सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिमाओं को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्णय किया। एक-एक करके सभी प्रतिमाओं को उठाकर तीन किलोमीटर की दूरी पर नगीना क्षेत्र पर विराजमान कर दिया गया, जो आज भी नगीना मंदिर जी में विराजमान है। जब श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा को उठाने लगे तो यह प्रतिमा जी किसी से भी उठी नहीं। प्रतिमा जी आकर में चार से पांच इंच की होने के बावजूद भी किसी भी व्यक्ति से उठाई नहीं गई। प्रतिमा जी को उठाते-उठाते संध्या हो गई लेकिन प्रतिमा अपनी जगह से हिली भी नहीं। जैन समाज द्वारा यह कार्य अगले दिन करने का निर्णय लिया गया।
रात्रि के समय जैन समाज के एक व्यक्ति को स्वप्न आया कि यह प्रतिमा जी इस स्थान से उठने को तैयार नहीं है, अतः प्रतिमा जी को यही पर रहने दिया जाए। सुबह होते ही जैन समाज द्वारा फिर से प्रतिमा जी को उठाने का कार्य किया गया लेकिन इस बार भी प्रतिमा को उठा नहीं पाए। उन व्यक्ति द्वारा रात्रि में आए स्वप्न के बारे में जैन पंचायत को बताया गया। अंत में जैन समाज ने निर्णय लिया की प्रतिमा जी को यहीं पर रहने दिया जाए तथा सुरक्षा की दृष्टि से मंदिर जी के कपाट बंद कर दिये जाए। प्रतिमा जी को मंदिर जी में ही विराजमान रहने दिया गया तथा मंदिर जी के कपाट बंद कर दिए गए। काफी समय तक मंदिर जी के कपाट बंद ही रहे, बीच-बीच में क्षेत्र में जैन परिवार के सदस्यों द्वारा मंदिर जी के कपाट खोलकर मंदिर जी की साफ-सफाई कर दी जाती थी। धीरे-धीरे सब कुछ पहले जैसे हो जाने पर फिर से मंदिर जी के कपाट दर्शनार्थियों के लिए खुल गए।
जैन समाज एवं सुविधाए
मांडीखेड़ा में आज एक ही जैन परिवार होते हुए भी मंदिर जी का संचालन रूप से किया जा रहा है। मंदिर जी में प्रतिमाओं का पूजा-प्रक्षाल एवं जलाभिषेक नियमित रूप से होता है। मंदिर जी के परिसर में ही दो बड़े हॉल एवं कमरे बने हुए है। यदि कोई यात्री किसी अन्य क्षेत्र से मंदिर जी में दर्शन करने आता है तो उनके रुकने की व्यवस्था भी उपलब्ध हो जाती है।
क्षेत्र के बारे में
नूहं जिला भारत के हरियाणा राज्य के 22 जिलों में से एक है। नूहं को प्राय सत्यमेवपूरम व मेवात के नाम से भी जाना जाता है। सत्यमेवपूरम यह नाम गाँधी जी द्वारा दिया गया एवं मेवों की संख्या अधिक होने के कारण इसे मेवात भी कहा जाता है। इसमें 1,860 वर्ग किलोमीटर (720 वर्ग मील) और 11 लाख जनसंख्या का क्षेत्रफल है। यह उत्तर में गुड़गांव जिले, पश्चिम में रेवाड़ी जिला और पूर्व में फरीदाबाद और पलवल जिलों से घिरा है। यह मुख्य मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र हैं। यह हरियाणा और उत्तर-पूर्वी राजस्थान का आधुनिक दक्षिणी भाग है। जिले में मुख्य व्यवसाय कृषि आधारित गतिविधिया है।
समिति
मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन के लिए कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
सदस्य - श्री जय कुमार जैन