मंदिर जी का परिचय

हरियाणा राज्य के रोहतक शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर डोभ तेजा माजरा एक छोटा सा गाँव स्थित है, यहीं पर विद्यमान है एक जैन मंदिर, जिसका पूरा नाम चिंतामणि पार्श्वनाथ पद्मावती जैन मंदिर व आश्रम है। यह हरियाणा का ऐसा एक लौता मंदिर है, जिसमें प्रतिमाएँ दिगम्बर है लेकिन संस्थापिका श्वेताम्बर है। मंदिर जी की निर्माण स्थापिका उपपरिवर्तनी महा साध्वी श्री रमेश कुमारी जी की सुशिष्याए वाणी भूषण महासाध्वी श्री सुरुचि जी, तपराधिका महासाध्वी श्री राजेश जी एवं ज्योतिष मार्तण्ड ज्योतिषाचार्य डॉ. साध्वी महाप्रज्ञ जी है। मंदिर जी के निर्माण से पूर्व यह स्थान बंजर भूमि में था। वर्ष 1993 की बात है जब मंदिर जी का निर्माण करने के लिए भूमि का भ्रमण किया जा रहा था तो यहाँ आकर सुशिष्याए वाणी भूषण महासाध्वी श्री सुरुचि जी माता जी के कदम रुक गए और उन्होंने निर्णय लिया कि इसी स्थान पर मंदिर जी का निर्माण किया जाएगा। मंदिर जी में अब तक दो बार पंचकल्याणक हुआ है। पहला पंचकल्याणक 2016 में श्वेतांबर आमना से और दूसरा पंचकल्याणक 2019 में दिगम्बर आमना से हुआ है।
मंदिर जी में मूल वेदी में मूलनायक प्रतिमा श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की है साथ ही में शांतिनाथ भगवान, नेमिनाथ भगवान, आदिनाथ भगवान एवं महावीर भगवान जी की प्रतिमा भी वेदी में ही विराजमान है। यह सभी प्रतिमाएँ बहुत ही अतिशयकारी है एवं प्रतिमाओं के प्रभाव से यहाँ पर सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर जी के गर्भगृह के बाहर की ओर माता पद्मावती जी और भैरव देव जी की प्रतिमा भी विराजमान है। जिनका भी क्षेत्र पर बहुत ही अतिशय है। मंदिर से पूर्व पहले भगवान जिनेन्द्र जी की प्रतिमाओं को एक भवन रूपी कमरे में विराजमान किया गया था, लेकिन यहीं पर ही एक सुंदर मंदिर का निर्माण करके प्रतिमाओं को विराजमान किया गया।
मंदिर जी के निर्माण की कहानी
वर्ष 1993 की बात है माता जी को कैंसर हो गया था। उनकी दशा इतनी दयनीय हो गई थी कि उस समय डॉक्टर द्वारा भी उनको जवाब दे दिया गया था। लेकिन माता जी के गुरु जी ने उनको भगवान पार्श्वनाथ जी एवं माता पद्मावती जी का एक गुरु मंत्र का जाप करने के लिए दिया। अस्वस्थ दशा में होकर भी माताजी मन ही मन में मंत्र का जाप करती रही, भगवान का गुणगान करती रही और उन्होंने अपने मन में धारणा बही और एक संकल्प लिया कि हे भगवान यदि तू मुझे इस संकट से निकलता है तो मैं आपका एक मंदिर अवश्य बनवाऊंगी। भगवान जी का अतिशय ही था कि कुछ दिनों बाद ही माता ही बिलकुल ठीक हो गई और उन्होंने अपने संकल्प अनुसार मंदिर जी का निर्माण करने का निर्णय लिया।
मंदिर जी का अतिशय
जब 2015 में प्रतिमााओं को मंदिर जी में लाया गया था, तब सभी सोच विचार में थे कि यहाँ आस-पास जैन समाज नहीं है और यहाँ पंचकल्याणक हम कैसे कर पाएंगे। सभी ने सोचा क्यों ना हम इन सभी प्रतिमाओं का पंचकल्याणक रानीला जी में करवा ले। इसके लिए सभी राजी हो जाते है और प्रतिमाओं को रानीला जी लेकर जाने की सभी तैयारियां हो जाती है। लेकिन अंतिम समय में जाट आरक्षण के कारण यह प्रतिमाएँ रानीला जी नहीं जा पाई। उसके बाद दोबारा से दिल्ली पंचकल्याणक में इन प्रतिमाओं को लेकर जाने का कार्यक्रम बनाया गया, लेकिन वहाँ भी किसी कारणवंश प्रतिमा जी जा नहीं पाई। बाद में 2016 में यही पर ही सभी प्रतिमाओं का पंचकल्याणक किया गया।
पंचकल्याणक में भगवान जी के माता-पिता सुधीर जैन एवं उनकी धर्मपत्नी शिखा जैन बने हुए थे। बताया जाता है पंचकल्याणक से पूर्व शिखा जैन जी मंदिर में आए और उन्होंने मंदिर जी में दर्शन किए। उन्हें ऐसा आभास हो रहा था जैसे मानो कोई सफेद कपड़ो में ध्यानस्त हुए उनको देख रहा है। अगले ही दिन उनको पंचकल्याणक में भगवान जी के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह भी भगवान द्वारा दिया गया कोई दिव्य संकेत ही था जो यह बता रहा था कि पंचकल्याणक में उन्हें भगवान जिनेन्द्र जी के माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है।
मंदिर जी में प्रतिमाओं के विराजमान होने के बाद यहाँ पर हर रविवार को शाम की आरती के बाद नाग देवता आया करते थे। उनको आस-पास के लोगों के द्वारा भी देखा गया है। यहाँ पर रंग-बिरंगे सर्प देखने को मिलते हैं। एक बार पड़ोस में एक छोटी बच्ची मंदिर जी के पास के परिसर में खेल रही थी उसने एक सांप को देखा और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी। उस लड़की की आवाज सुनकर पास खड़े लोग तुरंत ही वहाँ पर आ गए। उन्होंने सांप को देखा जो नीचे से कला और ऊपरी भाग से सफेद रंग का था लेकिन जब तक अन्य लोग उस स्थान पर पहुँचते, तब तक वह सर्प वहाँ से जा चुका था। इस वाक्य के बाद भी यहाँ पर बहुत सारे सर्प देखने को मिले है लेकिन उन्होंने आज तक किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचाया। बताया जाता है की मंदिर जी में सफेद रंग के एवं पीले रंग के सांप रहते हैं और यहाँ पर एक चितकबरा रंग का सर्प है। जो सात फुट का है उस सांप की कजली आज भी मंदिर में संभाल कर रखी गई है।
वर्ष 2020 की बात है आनंद मुनि महाराज जी का आगमन क्षेत्र पर हुआ। तो माता जी द्वारा महाराज जी को सांप की कहानी बताई जा रही थी। तभी महाराज जी ने कहा मुझे भी एक कांचली मिल जाती तो अच्छा होता। आप इनमें से ही मुझे एक दे दो। माता जी ने कहा महाराज जी यह कांचली हमें पहली बार मंदिर जी से मिली थी। इसलिए इसको हमने संभाल कर मंदिर जी में ही रखा हुआ है। यह काचली मैं आपको नहीं दे सकती। हमें कांचली मिलती रहती है। अब कभी हमें कांचली मिलेगी तो मैं आपको अवश्य दूंगी। महाराज जी यहाँ से विहार करके रोहतक चले गए। अगले ही दिन सुबह मंदिर जी के साथ वाले परिसर में सफेद रंग की कांचली मिली। उसी दिन महाराज जी के पास माताजी ने वह कांचली पहुंचा दी।
एक बार का वाक्य है ज्योतिषाचार्य डॉ. साध्वी महाप्रज्ञ जी को एक शाम सिर में तेज बुखार हुआ तथा उनकी आवाज एवं याददाश्त दोनों चली गई थी। सुबह सभी साध्वियों को पता चला कि महाप्रज्ञ माताजी जी की याददाश्त चली गई है तथा इनकी आवाज भी चली गई है। साध्वी महाप्रज्ञ जी पूरे शरीर से स्वस्थ थी। लेकिन वह बोल नहीं पा रही थी। सभी उनको डॉक्टर के पास जाने के लिए कहने लगे। क्योंकि जैन साधु-साध्वी डॉक्टरी चिकत्सा का उपयोग नहीं करते है इसलिए माता जी ने एक कागज पर लिख कर दिया कि जून तक रुक जाओ, यदि जून तक मुझे कोई भी फर्क नहीं पड़ा तो मुझे अस्पताल ले जाना। क्योंकि वह अपनी याददाश्त भी खो चूँकि थी। इसलिए वे णमोकार मन्त्र एवं सभी धार्मिक क्रिया करना भूल गई थी। वे मंदिर जी में अन्य साध्वियों को देखकर ही सभी भक्ति क्रियाएं किया करती थी। एक दिन माताजी को बुलाने के लिए काफी आवाज लगाई, लेकिन उन्होंने कोई भी जवाब नहीं दिया। सभी साध्वियाँ मिलकर उनके कमरें में गई, तो देखा कि साध्वी माताजी पास में रखी मेज पर सर लगाकर बैठी हुई थी। जैसे ही उनको हाथ लगाया वैसे ही वह जमीन पर गिर गई और उस समय उनका पूरा शरीर ठंडा पड़ चुका था। तभी सभी साध्वियों द्वारा साध्वी महाप्रज्ञ जी के हाथ पैर मले जाते है और भगवान से आराधना की जाती है। यह करते ही उनको अचानक से होश आया और वह पहले की भाँति बोलने लग पड़ी। उन्होंने कहाँ मुझे सब कुछ याद आ गया है। उनको पहले की तरह ही सब कुछ याद आ गया था। उन्होंने सभी को मन्त्र एवं आरतियाँ तथा इच्छा यामी पाठ भी सुनाया। यह बहुत ही अतिशय की बात है कि वह बिना किसी इलाज के मात्र 13 दिन के अंदर एकदम से स्वस्थ हो गए।
समाज एवं सुविधाए
मंदिर जी के आस पास जैन समाज केवल दो से तीन ही जैन परिवारों का है। मंदिर जी में एक संत निवास बना हुआ है। जिसमें तीन कमरे, एक बड़ा हॉल साथ ही बाथरूम की व्यवस्थता भी बनी हुई है। इस संत निवास में चारों पंथो के संत मुनि महाराज जी आते है।
क्षेत्र के बारे में
हरियाणा राज्य में रोहतक के पास स्थित "डोभ तेजा माजरा" एक छोटा और सुंदर गाँव है । यह गाँव रोहतक शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित है। डोभ तेजा माजरा प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण से घिरा हुआ है। इस गाँव की महिलाएं परम्परागत पोशाक, शिल्प और कला में रुचि दिखाती हैं। यहाँ के लोग खेती, पौधों की देखभाल और पशुपालन से जुड़े हैं।
मंदिर समिति
मंदिर जी की देख रेख नवकार जय सेवा ट्रस्ट के अंतर्गत किया जाता है।