सिद्ध क्षेत्र पावागिरी जी परिचय

श्री 1008 दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र पावागिरी झाँसी से ललितपुर मार्ग से पूर्व की ओर तालबेहट पावाजी मार्ग के 3.5 किलोमीटर अंदर स्थित है। मंदिर जी के मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर हमे मानस्तंभ दिखाई पड़ता है, जिसे देखने पर मन से सभी प्रकार के विचार समाप्त होकर केवल श्रद्धा भाव रह जाता है। इसी क्षेत्र पर ही श्री स्वर्ण भद्र, श्री गुणभद्र, श्री मणिभद्र तथा श्री वीर भद्र जी ने श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान जी से जैनेश्वरी दीक्षा प्रधान कर पावागिरी से मोक्ष प्राप्त किया था। यहाँ पर एक भौंयरा प्राचीन गुफा) था जिसमें से 6 प्रतिमाएँ प्राप्त हुई। उन्हीं प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा पर विक्रम संवत 1266 उत्कृण है अर्थात आज से 800 वर्ष पूर्व इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा की गई होगी।
मंदिर जी में मूल वेदी को भी भौंयरे के रूप में स्थापित किया गया है जिसमें श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की काले पाषाण की अतिशयकारी प्रतिमा है जिस पर विक्रम संवत 315 प्रतिष्ठित है साथ ही भगवान आदिनाथ, भगवान अजीतनाथ, भगवान संभवनाथ, भगवान मल्लिनाथ तथा भगवान नेमिनाथ जी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर जी में श्री पार्श्वनाथ जिनालय, श्री चंद्रप्रभु जिनालय, श्री महावीर जिनालय, श्री शीतलनाथ जिनालय, श्री शांतिनाथ जिनालय, श्री बाहुबली जिनालय, श्री पदम प्रभु जिनालय विराजमान है। इसके साथ ही मंदिर जी में ऊपर की ओर कुछ सीढ़िया चढ़कर जाने पर हमें सबसे पहले भूरे बाबा की गुफा देखने को मिलती है, जो यहाँ के व्यंतर देव है तथा गुफा के साथ में ही चार जिनालय है, जहाँ पर श्री स्वर्ण भद्र, श्री गुणभद्र, श्री मणिभद्र तथा श्री वीर भद्र जी की खड्गासन देसी पाषाण की प्रतिमाएँ विराजमान है। पहाड़ी पर जिनालयो के पश्चात नवनिर्मित चौबीसी प्रतिमाएँ स्थापित है। जिन्हें दर्शन मात्र से मन को अत्यंत सुख का अनुभव होता है।
कथा अतिशय की
यहाँ भूरे बाबा की बहुत महत्वता है। भूरे बाबा के अनुसार मूल भौंयरे के अतिरिक्त मंदिर जी में दो अन्य भौंयरे है, जिनमें से एक खुदाई के दौरान प्राप्त हो सकता है। भौंयरे रत्नमयी प्रतिमाएँ विराजमान है। भूरे बाबा के कथानुसार मंदिर जी में मूल भौंयरे की बाईं ओर एक बांवड़ी थी जो समय के साथ समतल भूमि में परिवर्तित हो गयी। आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व खुदाई हुई तो वहाँ वास्तव में बांवड़ी निकली तथा बांवड़ी की सीढ़ियों पर कुछ जैन प्रतिमाएँ थी। प्राप्त प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा पर विक्रम संवत 299 तथा पावा शब्द उत्कृण था तथा आज से 1780 वर्ष पूर्व इसी प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया होगा। प्रत्येक महीने की 15 तारीख को भूरे बाबा का दरबार लगता है, जिसमे दूर-दूर से जैन तथा अजैन लोग मिलकर अपनी प्रार्थनाओं को व्यंतर देव के आगे रखते है।
सुविधाएं एवं धर्मशाला
यहाँ क्षेत्र में दूर से आने वाले यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था बनी हुई है, क्षेत्र में एक साथ 1000 यात्रियों के रुकने की व्यवस्था है। यात्रियों के लिए सात्विक भोजन की व्यवस्था भी मंदिर जी में उपलब्ध है।
क्षेत्र के बारे में
ललितपुर के उत्तर में झांसी, दक्षिण में सागर, पूर्व में मघ्यप्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर एवं शिवपुरी तथा पश्चिम में गुना से सटा हुआ है। बेतवा, धसन और जमनी यहाँ की प्रमुख नदियाँ है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में देवगढ़, नीलकंठेश्ववर त्रिमूर्ति, रंछोरजी, माताटीला बांध और महावीर स्वामी अभ्यारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस जिले की स्थापना सत्रहवीं शताब्दी में बुंदेल राजपूत द्वारा की गई थी। 1891 से 1974 ई. तक ललितपुर जिला झांसी जिले का ही एक हिस्सा था। यहां कई हिन्दू और जैन मंदिर भी स्थित है। देवगढ़ किला भी ललितपुर में है जहाँ किले के भीतर 31 जैन मंदिर है। इन मंदिरों में सबसे सुंदर मंदिर जैन तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ जी का है।
समिति
श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पावागिरि जी समिति द्वारा ही मंदिर जी का संचालन किया जाता है। समिति के सदस्य समिति :-
अध्यक्ष - श्री लाल चंद्र जैन जी