मंदिर जी का परिचय

सन् 1981 में श्री सुमेरचन्द जी जैन एवं उनके भतीजे श्री रमेशचन्द जी जैन के परिवार वालों का बावल रोड पर स्थित अपनी जमीन मन्दिर जी के निर्माण के लिये दान देने का विचार कई वर्षों तक चलता रहा। किन्तु मॉडल टाउन एरिया में पर्याप्त जैन परिवारों का निवास न होने के कारण यह बात आगे टलती रही। मॉडल टाउन निवासी श्रीमती गुलाबो देवी धर्मपत्नी श्रीराम जी जैन की भावना थी कि मॉडल टाउन में भी एक जैन मन्दिर होना चाहिए। इसी इच्छा की पूर्ति हेतु श्रीमती गुलाबो देवी जी, श्रीमती जयमाला जैन धर्मपत्नी श्री सुमेरचन्द जी जैन तथा श्रीमती केसर देवी धर्मपत्नी श्री मनोहरलाल जैन जी, श्री देवेन्द्र जी जैन सर्राफ द्वारा मंदिर जी के निर्माण का निर्णय लिया जाता है। जिसके लिए 336 वर्गगज भूमि का चुनाव किया गया।
इस विषय का प्रस्ताव जैन समाज रेवाड़ी की बैठक में आने पर वहाँ उपस्थित श्री रमेशचन्द जी जैन ने उस विचार पर हर्ष व्यक्त किया और अपनी ओर से प्रस्ताव भी दिया कि इस 336 वर्गगज भूमि को बढ़ाकर 1 कनाल अर्थात् 605 वर्गगज कर लिया जाये और बाकी वर्गगज भूमि अपनी ओर से देने की सहर्ष सहमति दे दी। इस प्रकार एक कनाल भूमि पर नए मन्दिर के निर्माण हेतु व्यवस्था हो गई। इसके बाद श्री देवेन्द्र जी जैन सर्राफ, श्री रमेशचन्द जी जैन, श्री दीवान चन्द जी व अन्य महानुभावों ने उपरोक्त भूमि पर मंदिर बनाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही इस भूमि तक पहुँचने हेतु लगभग 99 फुट लम्बा एवं सवा 12 फुट चौड़ा एक मार्ग बनाने के लिए भूमि श्रीमती सुनील जैन धर्मपत्नी श्री देवेन्द्र कुमार जी जैन ने प्रदान की।
इसके बाद सन् 2002 में गणिनी प्रमुख आर्यिका 105 श्री ज्ञानमती माताजी का रेवाड़ी में आगमन हुआ और उन्होंने इस स्थान को देखकर मन्दिर निर्माण का शुभारम्भ अपने सान्निध्य में करा दिया। इसके बाद शुभ मुहूर्त में श्रीमती जयमाला जैन, श्री दीवानचन्द जी जैन एवं श्री रमेशचन्द जी जैन ने अपने पूरे परिवार सहित जैन समाज के तत्कालीन प्रधान श्री धन्नामल जी जैन अन्य पदाधिकारीगण एवं जैन समाज रेवाड़ी के सदस्यों के साथ मिलकर मन्दिर निर्माण हेतु आधारशिला रखी। कुछ समय में ही जैन समाज ने चारदीवारी बनवाकर तथा एक अस्थाई निर्माण कराकर 1008 श्री चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर, कुओं वाला के प्रधान श्री पदमचन्द जी जैन बजाज एवं उनकी कार्यकारिणी से अनुमति लेकर 1008 श्री आदिनाथ भगवान की पाषाण की प्रतिमा शोभायात्रा निकाल कर इस स्थान पर मन्दिर जी में विधिवत् स्थापित कर दी। यह एक अस्थाई व्यवस्था थी। मन्दिर निर्माण के लिए अधिक धनराशि की आवश्यकता थी। उसके लिए अनेक दान देने वालों ने धनराशि प्रदान की, जिनमें सबसे प्रमुख रहें - श्री महावीर प्रसाद जी जैन (अग्रवाल मैटल वर्क्स प्रा० लि०) जिन्होंने सबसे अधिक धनराशि प्रदान कर मन्दिर जी के लिए एक भव्य भवन का निर्माण कराया। इसके बाद मन्दिर की प्रबन्धक कमेटी ने वास्तुकारों से भव्य जैन मन्दिर के निर्माण हेतु विस्तार से विचार विमर्श कर वास्तु सम्मत भवन के निर्माण का निर्णय लिया और इस भवन की आधारशिला श्री महावीर प्रसाद जी जैन (अग्रवाल मैटल वर्क्स प्रा० लि०) ने सपरिवार रखी।
वर्ष 2004 में परमपूज्य आचार्य 108 श्री पुष्पदन्त सागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि 108 श्री सौरभसागर जी एवं मुनि 108 श्री प्रबलसागर जी महाराज का रेवाड़ी में शुभागमन हुआ और उनके सान्निध्य में यहाँ दिनांक 28 फरवरी से 4 मार्च 2004 तक प्रतिष्ठाचार्य बा०द्र० श्री जयकुमार जी 'निशान्त' के मार्ग निर्देशन में पंचकल्याणक महोत्सव सम्पन्न हुआ। जिसमें मुख्य मन्दिर जी के बेसमेंट में एक हॉल और दो कमरे हैं। तथापि मन्दिर प्रबन्धक कमेटी को और स्थान की आवश्यकता थी। इस विषय पर प्रबन्धक कमेटी के तत्कालीन प्रधान श्री अभयकुमार जी जैन (अग्रवाल मैटल वर्क्स प्रा० लि०) एवं श्री देवेन्द्र कुमार जैन सर्राफ ने श्री रमेशचन्द जी जैन से इस विषय पर बात की। उनकी कुछ भूमि मन्दिर जी को देने के बाद शेष भूमि साथ ही लगी हुई थी। तब उन्होंने अपने परिवार में सलाह कर 15 मरला अतिरिक्त भूमि की व्यवस्था की। इस प्रकार श्री रमेशचन्द जी जैन ने अपनी स्वर्गीय बहन सन्तोष जैन की स्मृति में अपने और अपने परिवार की ओर से संतनिवास हेतु भूमि का अंशदान किया। इस भूमि पर परमपूज्य आचार्य 108 श्री पुष्पदन्त सागर जी महाराज के परम शिष्य, मुनि 108 श्री सौरभसागर जी एवं मुनि 108 श्री प्रबल सागर जी महाराज के सान्निध्य में चातुर्मास के समय दिनांक 17 सितम्बर 2006 को "पुष्पदन्त मांगलिक भवन" का शिलान्यास हुआ। यह कार्य तत्कालीन प्रधान श्री राकेश कुमार जी जैन लोहिया, कार्यकारिणी सदस्यों एवं समस्त जैन समाज के विशेष सहयोग से पूर्ण हुआ। अब इस भवन में 5 कमरे, 1 रसोई घर, 1 आहार कक्ष, स्नानघर आदि बने हुए हैं। जब भी कभी संतों का यहाँ आगमन होता है तब इस स्थान का शुभ उपयोग होता है।
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर कुआँ वाला से 1008 श्री आदिनाथ भगवान की मूँगावर्णी अत्यन्त प्राचीन पाषाण की प्रतिमा वि.सं. 1548 (सन् 1491) में रथयात्रा निकालकर अस्थाई मन्दिर में विधिवत् स्थापित करी गई थी। तब से इस प्रतिमा के अतिशय के कारण मन्दिर जी का निर्माण कार्य चलता हुआ शीघ्र ही पूरा हो गया। बाद में प्रतिमा जी को श्री कुआँ वाला मन्दिर जी कार्यकारिणी की अनुमति लेकर मॉडल टाउन मन्दिर जी में ही विधिवत् स्थापित कर दिया गया।
मंदिर जी की वेदिया
मंदिर जी में मूलतः एक वेदी है, जिसमें तीनो प्रतिमाएँ आदिनाथ भगवान जी की विराजमान है।
श्री 1008 आदिनाथ भगवान प्रतिमा जी, विक्रम सम्वत-2060, वर्ष-2004, माह-फाल्गुन शुक्ला-12 (मूलनायक)
श्री 1008 आदिनाथ भगवान प्रतिमा जी, विक्रम सम्वत-2060, वर्ष-2004, माह-फाल्गुन शुक्ला-12
श्री 1008 आदिनाथ भगवान प्रतिमा जी, विक्रम सम्वत-1548, वर्ष-1491, माह-वैशाख शुक्ला-3
जैन समाज एवं सुविधाए
धर्मनगरी रेवाड़ी पर भगवान महावीर स्वामी एवं दिगम्बर संतो का आशीर्वाद एवं बुजुर्गों की विशेष कृपा रही है। जिसके फलस्वरूप यहाँ पर छह जैन मंदिर, सात जैन विद्यालय और लगभग दस अन्य जनउपयोगी संस्थाएँ कार्यरत है। रेवाड़ी में लगभग 200 जैन परिवारों का समाज है। जैन समाज द्वारा मंदिर जी का संचालन सुचारु रूप से होता है। जैन मंदिरों में दूर के क्षेत्रों से दर्शन करने आए यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई जाती है। सम्पर्क करके आने पर भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई जाती है। क्षेत्र में जैन साधु महाराज जी के आगमन पर त्यागी भवन में रुकने की व्यवस्था की जाती है।
क्षेत्र के बारे में
रेवाड़ी भारत के हरियाणा राज्य में स्थित है। यह शहर भारतीय राजमार्ग (NH-71B) के आसपास स्थित है और रेवाड़ी जिला का मुख्यालय भी है। रेवाड़ी क्षेत्र का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके आसपास कई प्राचीन स्मारक और ऐतिहासिक स्थल हैं। रेवाड़ी अपने आप में बहु आयामी प्रतिभाओ, महान कलाकारों, कवियों, साहित्यकारों, शूरवीरो, धार्मिक स्थलों, शैक्षणिक प्रतिष्ठानों, प्रकृतिं सौंदर्य से ओतप्रोत दक्षिणी हरियाणा का एक ऐसा स्थान है, जहाँ आकर मन को सुकून और पवित्रता का बोध होता है। प्राचीन महाभारत काल के दौरान, रेवत नामक एक राजा था, जिसकी पुत्री का नाम रेवती था। उसे सब रेवा कहकर बुलाते थे और उसके नाम पर शहर 'रेवा वाडी' की स्थापना की थी। खाने के हिसाब से यहाँ की रेवड़ियाँ बहुत मशहूर हैं। यहाँ पर भारत की सबसे पहली गौशाला सन् 1878 में बनाई गई थी जो कि राजा राव युधिष्ठिर यादव द्वारा बनाई गई थी। रेवाड़ी क्षेत्र ने आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह शहर एक आधुनिक बाजार सेंटर भी है जो निकटवर्ती गांवों और नगरों को आवश्यक सामग्री और सेवाओं की पहुंच प्रदान करता है। इसके अलावा रेवाड़ी क्षेत्र के पास कई प्राकृतिक सौंदर्य स्थल भी हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। सम्पूर्ण रूप से रेवाड़ी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण और विकासशील क्षेत्र है, जो सांस्कृतिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
समिति
मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन के लिए मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
संरक्षक - श्री देवेन्द्र कुमार जैन
प्रधान - श्री दिनेश कुमार जैन लोहिया
उप प्रधान - श्री मुकेश जैन सर्राफ
सचिव - श्री दिनेश जैन
कोषाध्यक्ष - श्री शैलेश जैन
सदस्य - श्री अभयकुमार जैन