मंदिर जी का परिचय

मंदिर जी का निर्माण श्री रविन्द्र कुमार जैन जी द्वारा 2003 में करवाया गया। श्री रविन्द्र कुमार जी बताते है कि पहले क्षेत्र में आस-पास कोई जैन मंदिर नहीं होता था तथा उन्हें दर्शन करने के लिए दूर जाना पड़ता था। इसलिए उन्होंने मंदिर जी के निर्माण का निर्णय लिया। मंदिर निर्माण के लिए उचित स्थान की खोज शुरू की गई लेकिन उन्हें कही भी उचित स्थान नहीं मिला। अंत में उनकी पत्नी जी द्वारा सुझाव दिया गया किया मंदिर जी के निर्माण के लिए 150 गज भूमि अपनी तरफ से दान में दी जाए। श्री रविन्द्र कुमार जी ने मंदिर जी के निर्माण के लिए 150 गज भूमि दान में देने का विचार बनाया।
वर्ष 1998 में श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज एवं आचार्य श्री 108 प्रबल सागर जी महाराज क्षेत्र में आए हुए थे। उन्होंने रविन्द्र जी से कहाँ की मंदिर जी का निर्माण 250 गज में होना चाहिए तभी मंदिर जी की भव्यता बढ़ेगी। महाराज जी का कथन मानते हुए रविन्द्र जी ने मंदिर के निर्माण के लिए 250 गज भूमि दान में दे दी। रविन्द्र जी के मन में मंदिर जी को ऊपरी तल पर बनवाने का और निचले तल पर 4 कमरे व एक बड़ा हॉल बनवाने का विचार था। जब मंदिर जी का निर्माण कार्य चल रहा था तो रविन्द्र कुमार जैन जी के मन में आया की एक दिन हमें भी बुजुर्ग होना है हम ऊपर भगवान के दर्शन करने कैसे जा पाएंगे। यही विचार मन में धारण किये रविन्द्र जी ने काम रुकवाया और ऊपरी तल की जगह नीचे ही मंदिर जी बनाने का निर्णय लिया। मंदिर जी में मूलतः एक वेदी है, जिसमें मूलनायक प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान जी की है। मूल प्रतिमा के साथ श्री पद्मप्रभु भगवान, श्री शांतिनाथ भगवान, श्री नेमिनाथ भगवान,श्री महावीर भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान एवं बाहुबली जी के साथ अन्य प्रतिमाएँ विराजमान है। मंदिर जी में माता पद्मावती एवं क्षेत्रपाल बाबा जी की भी वेदिया निर्मित है।
कुछ समय बाद रविन्द्र कुमार जैन जी ने सोचा कि मंदिर जी में आने वाले साधु महाराज जी के लिए भी रुकने की व्यवस्था व प्रवचन हॉल भी यहाँ पर होनी चाहिए। मंदिर जी से लगती 180 गज जगह उनके बेटे के नाम थी। उन्होंने यह जगह भी मंदिर जी को दान में दे दी और यहाँ पर त्यागी भवन, एक बड़ा प्रवचन हॉल और एक जैन धर्मार्थ औषधालय का निर्माण करवाया। जिसमें नाममात्र शुल्क पर चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है। मंदिर जी का पूरा क्षेत्रफल 430 गज है। प्रतिदिन मंदिर जी में पूजा-प्रक्षाल एवं अभिषेक होता है।
अतिशय की कथा
अनजाने में भूल हो जाना - श्री रविन्द्र कुमार जैन जी बताते है मंदिर जी के निर्माण के समय समवशरण में माता पद्मावती एवं क्षेत्रपाल बाबा जी की वेदी का भी निर्माण होना था। लेकिन समाज के किसी व्यक्ति ने उनसे कहाँ कि देवों की वेदियो को भगवान के साथ समवशरण में स्थापित नहीं करते है। रविन्द्र जैन जी ने देवताओं की वेदियो को अलग स्थान देने का निर्णय लिया। कुछ समय बाद उन्हें पता चला की उनके पुत्र को किसी ने अगवाह कर लिया है तथा फिरौती में बीस लाख रुपए माँगे है। चिंतित होकर रविन्द्र जैन जी ने सराय मौहल्ले में स्थित जैन मंदिर में जाकर भगवान से क्षमा याचना की। कुछ समय पश्चात ही उनका पुत्र सही हालत में घर वापिस लौट आया। इसके बाद उन्होंने माता पद्मावती एवं क्षेत्रपाल बाबा जी की वेदियो को मंदिर जी के समवशरण में ही विराजित किया। वर्तमान में प्रति सप्ताह शुक्रवार के दिन दूर-दूर से लोग आकर माता पद्मावती जी के दर्शन करते है।
प्रतिमा पर केसर का तिलक लगा होना - श्री रविन्द्र कुमार जैन जी प्रतिदिन मंदिर जी में पूजा-प्रक्षाल एवं जलाभिषेक करते है। एक दिन जब वे मंदिर जी में आए तो उन्होंने देखा कि मूल प्रतिमा पर पहले से ही केसर का तिलक लगा हुआ है। उन्होंने आस पास देखा तो उनके अतिरिक्त मंदिर जी में कोई भी नहीं था। मंदिर जी में बिना ताला खोले कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता था। अतः इस घटना के उपरांत माना जाता है कि मंदिर जी में देवो का आगमन होता है।
जैन समाज एवं सुविधाए
रोहतक में 300 दिगम्बर जैन परिवारों का समाज है। जैन समाज द्वारा मंदिर जी का संचालन किया जाता है। समय-समय पर जैन मुनि महाराज के चरण भी रोहतक में पधारे है। मंदिर जी में दर्शन करने आने वालों के लिए उचित व्यवस्था उपलब्ध है। यदि कोई यात्री मंदिर जी में संपर्क करके आता है तो उसके लिए रुकने एवं भोजन की व्यवस्था भी जैन समाज द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। मंदिर जी के साथ में ही जैन धर्मार्थ औषधालय है। जहाँ आयुर्वेदिक चिकित्सा उपलब्ध करवाई जाती है। क्षेत्र में जैन लाइब्रेरी का निर्माण किया गया है। जैन समाज द्वारा निर्मित गर्ल्स एवं बॉयज स्कूल में सभी समाज के छात्र एवं छात्राओं को शिक्षा दी जाती है। कम आयु के बच्चो के लिए सप्ताह में एक दिन जैन पाठशाला का आयोजन किया जाता है, ताकि बच्चे जैन सिद्धांतो से अवगत रहकर जीवनयापन करे।
क्षेत्र के बारे में
रोहतक भारत के हरियाणा राज्य का एक जिला है। रोहतक की स्थापना पहले रोहतासगढ़ (रोहतास का दुर्ग) के राजा रोहतास द्वारा की गई थी। रोहतक जिला चारों तरफ से हरियाणा के ही पाँच जिलों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में जींद, पूर्व में सोनीपत, पश्चिम में भिवानी, दक्षिण में झज्जर उत्तर-पश्चिम में हिसार और दक्षिण पश्चिम में बहादुरगढ़ है। रोहतक अनाज और कपास का प्रमुख बाज़ार है। यहाँ की औद्योगिक गतिविधियों में खाद्य उत्पाद, कपास की ओटाई, चीनी और बिजली के करघे पर बुनाई का काम उल्लेखनीय है।
समिति
मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन के लिए समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
संस्थापक - श्री रविन्द्र कुमार जैन जी
अध्यक्ष - श्री विजेन्द्र जैन जी
उपाध्यक्ष - श्री चन्द्रसेन जैन जी
कोषाध्यक्ष -श्री आदिश जैन जी
सचिव - श्री मनोज जैन जी