तिजारा जी अतिशय क्षेत्र

एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, देहरा तिजारा
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का निर्माण 1956 में हुआ है
  • स्थान
    देहरा तिजारा, अलवर, राजस्थान
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक
अतिशय क्षेत्र देहरा तिजारा परिचय
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राजस्थान के अलवर से 55 किलोमीटर तथा दिल्ली से 110 किलोमीटर की दूरी पर तिजारा में स्थित है, श्री 1008 चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, देहरा तिजारा। देहरा का अर्थ देवालय होता है, इसलिए क्षेत्र को देहरा तिजारा के नाम से जाना जाने लगा। यह क्षेत्र अलवर से भिवाड़ी नेशनल मार्ग के बीच में पड़ता है। तिजारा जैन मंदिर रोड पर प्रवेश करने पर लगभग 2 किलोमीटर चलने पर आता है तिजारा का प्रसिद्ध जैन बाजार। बाजार में रसोई घर की जरूरत की हर प्रकार की वस्तु जैसे आचार, मसाले तथा मिठाइयाँ उपलब्ध है। तिजारा बाजार की गली पतली होने के कारण आप वाहन से पैदल चल कर मंदिर जी के दर्शन करते है। बाजार से पहले एक गली मंदिर जी के पीछे स्थान पर जाती है जहाँ बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए पार्किंग की व्यवस्था की गई है। बाजार से थोड़ा आगे चलकर हम मंदिर जी के मुख्य द्वार पर आते है। मंदिर जी के मुख्य द्वार से प्रवेश करके सामने सफेद मार्बल से बना मान स्तंभ दिखाई देता है।

मंदिर जी के जिनालय में 3 वेदिया तथा 2 नवरत्नों वाली भगवान जिनेन्द्र जी की अन्य वेदिया स्थापित है। मंदिर जी की मूल वेदी में श्री 1008 चन्द्रप्रभु जी की चतुर्थकालीन सफेद पाषाण से निर्मित मूल प्रतिमा स्थापित है। मूल वेदी के दाहिनी तरफ वेदी में श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान की मूल प्रतिमा के साथ अन्य प्रतिमाएँ विराजमान है। मूल वेदी के बाईं तरफ वेदी में श्री 1008 महावीर भगवान जी की मूल प्रतिमा के साथ अन्य प्रतिमाएँ विराजमान है। मंदिर जी में पद्मावती माता जी एवं क्षेत्रपाल बाबा जी की प्रतिमाएँ भी विराजमान है। मंदिर जी में मूल वेदी की परिक्रमा करने का मार्ग बना है। मंदिर जी के पुरे हॉल में जैन चित्रकारी को दर्शाया गया है। मंदिर जी में प्रकट स्थल बना है, जहाँ से प्रतिमा प्रकट हुई थी। मंदिर जी में आने वाले सभी लोग इस पवित्र मिट्टी को अपने माथे पर लगाते है। मंदिर जी में सन् 2005 में आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी की प्रेरणा से सुंदर वाटिका का निर्माण किया गया। मंदिर जी में एक लम्बा लकड़ी का रैंप बना हुआ है जो वाटिका की ओर जाता है। वाटिका में श्री 1008 चंद्रप्रभु भगवान जी की 15 फुट ऊँची पाषाण से बनी मन को भक्ति में जोड़ने वाली प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा जी के सामने नीचे की ओर एक सुंदर पार्क बना हुआ है। मंदिर जी में सच्चे एवं श्रद्धाभाव से आने वालें श्रद्धालुओं की मनोकामना आवश्य पूर्ण होती है।


कथा अतिशय की

सन् 1956 में जब नगर पालिका तिजारा द्वारा क्षेत्र में सड़क को चौड़ा करने का काम करवाया जा रहा था, तब भूमि में खुदाई के दौरान जैन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए। इसके बाद स्थानीय जैन सभा द्वारा निर्णय लिया गया की यहाँ कभी जैन मंदिर होगा। इसी आशा से खुदाई का कार्य फिर शुरू हुआ। काफी गहराई तक खोदने पर भी कुछ हाथ नहीं लगा। अंतः सभी ने मिलकर खुदाई का कार्य रोकने का निर्णय लिया तथा खुदाई को रोक दिया। रात के समय स्थानीय निवासी श्रीमति सरस्वती देवी को स्वप्न आता है कि यहाँ भगवान जिनेन्द्र जी की प्रतिमा है। उन्होंने अपने पति श्री वैद्य बिहारी जी से आग्रह किया की उस स्थान पर प्रभु जी की प्रतिमा है तथा मैं वहाँ जाकर दीप जलाना चाहतीं हूँ। उनके पति ने उनसे कहा की वहाँ गहरी खुदाई करने पर भी कुछ नहीं मिला और अब खुदाई का कार्य बंद हो चुका है। लेकिन वह नहीं मानी, उन्होंने पति से आग्रह किया की वह वहाँ अपनी तरफ से खुदाई करायें। अंत में श्री वैद्य बिहारी जी ने उनकी बात मान ही ली। प्रातः काल में उन्होंने उस स्थान पर खुदाई करने को कहा जहाँ सरस्वती देवी जी ने दीप जलाया था। खुदाई के कुछ समय बाद भूमि से श्री 1008 चन्द्रप्रभु जी की अतिशयकारी प्रतिमा प्रकट हुई। बाद में मंदिर जी का निर्माण कर प्रतिमा जी को मंदिर जी में स्थापित किया गया। वर्तमान में मंदिर जी की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल रही है और प्रतिमा जी के अतिशय के कारण दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर जी में दर्शन करने के लिए आते है।


सुविधाएं एवं धर्मशाला

मंदिर जी में आधुनिक सुविधाओं से लैस एक दिगम्बर जैन धर्मशाला है, जिसमें 500 कमरे स्थित है। कमरों में एयर कंडीशनर एवं गीजर की सुविधा उपलब्ध है। शुद्ध भोजन के लिए भोजनालय भी बना हुआ है। धर्मशाला में 2000 यात्रिओं के ठहरने की व्यवस्था बनी हुई है। मंदिर जी में एक आयुर्वेदिक चिकित्सालय की व्यवस्था भी बनी हुई है। धर्मशाला का संचालन दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा किया जाता है।


अलवर, राजस्थान क्षेत्र के बारे में

अलवर, राजस्थान के पूर्व में स्थित है। अलवर, राजस्थान का जिला तथा लोकसभा क्षेत्र भी है। अलवर को यहाँ पर स्थित किले, पहाड़ो तथा पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। अलवर को पूर्वी राजस्थान का कश्मीर भी कहाँ जाता है। अलवर जयपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। क्षेत्रफल में अलवर 8380 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जनसंख्या में यह राजस्थान के 8वें स्थान पर आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह दिल्ली एनसीआर में आता है। बताया जाता है की यह महाभारत काल में मत्स्य जनपद का हिस्सा था। अलवर को राजस्थान का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है। भारत के रूपए नोटों की स्याही बनाने का कारखाना भी अलवर में ही स्थित है। अलवर के तिजारा में स्थित जैन मंदिर यह प्रमाण है कि यहाँ एक समय जैन समाज का प्रभुत्व रहा है।


समिति

श्री 1008 चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, देहरा तिजारा के लिए दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा प्रबन्धकारिणी कमेटी का निर्माण किया गया है। जिसके सदस्य इस प्रकार है :-

अध्यक्ष - श्री पवन जैन (ऐडवोकेट)

महामंत्री - श्री संजय कुमार जैन

कोषाध्यक्ष - श्री प्रेमसागर जैन