श्री खंडेलवाल दिगम्बर जैन मंदिर, पंचायत वैदवाड़ा
-vaidwara-digambar-jain-temple-.jpg

एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 खंडेलवाल दिगम्बर जैन मंदिर, पंचायत वैदवाड़ा
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का गर्भगृह 700 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है
  • स्थान
    वैदवाड़ा, मालीवाड़ा, चांदनी चौक, दिल्ली
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 6 बजे से 12 बजे तक, सांय 5 बजे से 8:30 बजे तक
मंदिर जी का परिचय
-vaidwara-digambar-jain-temple-.jpg

भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक स्थित वैदवाड़ा क्षेत्र में श्री 1008 खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग संकरी गलियों से होकर जाता है, इसलिए श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे अपने वाहन मुख्य सड़क के पास स्थित पार्किंग में खड़ा कर मंदिर तक पैदल आएं। मंदिर की भव्यता और प्राचीन स्थापत्य को देखते ही इसकी ऐतिहासिकता का आभास हो जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर चांदनी चौक में स्थित प्रसिद्ध लाल जैन मंदिर से भी अधिक प्राचीन है। यह तीन मंजिला जिनालय अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। दूसरे तल पर प्रवेश करने पर एक भव्य प्राचीन बारहदरी शैली में निर्मित विशाल बरामदा दिखाई देता है, जो इस मंदिर की उत्कृष्ट निर्माण कला को दर्शाता है। बरामदे से आगे बढ़ने पर मंदिर के गर्भगृह के दर्शन होते हैं। गर्भगृह में कुल पांच वेदियाँ स्थापित हैं, जिनमें प्राचीन जिन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। मूलवेदी में श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान है। इसके साथ ही, पाषाण एवं अष्टधातु से निर्मित 700 वर्ष से भी अधिक प्राचीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। द्वितीय वेदी में श्री 1008 भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा मूलनायक के रूप में स्थापित है। तृतीय वेदी में श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ विराजमान हैं। चतुर्थ वेदी में श्री 1008 भगवान पद्मप्रभु की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। सभी वेदियाँ अत्यंत ऊर्जा से भरपूर हैं, जिनमें अन्य प्राचीन प्रतिमाएँ भी श्रद्धापूर्वक स्थापित हैं।

मंदिर जी के गर्भगृह के बाहर पाँचवीं वेदी स्थित है, जिसमें एक हजार से दो हजार वर्ष पुरानी प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। कहा जाता है कि लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व, जब मंदिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की वेदी का जीर्णोद्धार किया जा रहा था, तब आचार्य श्री 108 प्रज्ञासागर जी महाराज मंदिर में पधारे हुए थे। उसी समय महाराज जी को संकेत मिला कि मंदिर के भूगर्भ में तीर्थंकर भगवान की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। जीर्णोद्धार के दौरान जब वेदी के नीचे खुदाई की गई, तो वहाँ से अष्टधातु एवं पाषाण की लघु प्राचीन प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं। कहा जाता है कि इन्हीं प्रतिमाओं में श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की एक प्रतिमा भी थी, जिसका गले का हिस्सा खंडित था। प्रारंभ में, केवल संतुलन बनाए रखने के लिए सिर के हिस्से को ऊपर रखा गया, लेकिन कुछ दिनों बाद स्थानीय समाज ने देखा कि प्रतिमा का खंडित भाग स्वयं ही जुड़ गया था। आज भी श्रद्धालु प्रतिमा पर उस चमत्कारी पुनःसंयोजन के चिन्हों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, जो इस मंदिर के दिव्य और अलौकिक स्वरूप का प्रमाण है।

श्री 1008 पद्मप्रभु भगवान जी के गर्भगृह के बाहर दो वेदियाँ स्थित हैं, जिनमें माता पद्मावती एवं क्षेत्रपाल बाबा जी की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। इसके अतिरिक्त, एक अन्य वेदी में धरणेन्द्र देव और माता पद्मावती जी की दिव्य प्राचीन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। स्थानीय समाज में माता पद्मावती जी की प्रतिमा को विशेष अतिशयकारी माना जाता है, और भक्तगण यहां दर्शन कर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। मंदिर में प्राचीन हस्तलिखित जैन शास्त्रों का भी अद्वितीय संग्रह है, जो इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को और अधिक बढ़ाता है। मंदिर के ठीक सामने संत भवन स्थित है, जो आगंतुक साधु-महाराजों के ठहरने के लिए विशेष रूप से निर्मित किया गया है। जब भी क्षेत्र में साधु-संतों का आगमन होता है, उनके निवास की व्यवस्था यहीं की जाती है। संत भवन में भी श्री शांतिनाथ भगवान जी की वेदी प्रतिष्ठित है, जिसमें पाषाण एवं अष्टधातु से निर्मित अन्य जिन प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं। मंदिर में प्रतिदिन स्थानीय जैन श्रद्धालुओं द्वारा पूजा, प्रक्षाल एवं शांतिधारा जैसे धार्मिक अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से संपन्न किए जाते हैं, जिससे इस पावन स्थल की आध्यात्मिक ऊर्जा सदैव प्रवाहित होती रहती है। मंदिर अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण जैन श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।


जैन समाज एवं सुविधाए

दिल्ली के चांदनी चौक, वैदवाड़ा क्षेत्र में स्थित श्री खंडेलवाल दिगंबर जैन मंदिर के आसपास वर्तमान में जैन समाज के परिवारों की संख्या सीमित रह गई है। इसके बावजूद, मंदिर में नियमित रूप से पूजा, प्रक्षाल और धार्मिक अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से संपन्न किए जाते हैं। मंदिर में समय-समय पर जैन साधु-साध्वियों का आगमन होता रहता है। उनके आहार एवं विश्राम की उचित व्यवस्था के लिए संत भवन का निर्माण किया गया है। जो श्रद्धालु दूर-दराज़ से मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं, उनके ठहरने की सुविधा के लिए धर्मशाला बनाई गई है। यहाँ मात्र ₹100 से ₹150 के नाममात्र शुल्क पर ठहरने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा, धार्मिक आयोजनों एवं सामाजिक कार्यक्रमों के लिए भी धर्मशाला का उपयोग किया जाता है।


दिल्ली क्षेत्र के बारे में

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी और एक केंद्र-शासित प्रदेश है। भारत की राजधानी होने के कारण केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों- कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय दिल्ली में ही स्थापित हैं। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है, और पुराणों में इसका विशेष महत्व है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं।

दिल्ली का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत महापुराण में मिलता है जहाँ इसका उल्लेख प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के रूप में किया गया है। इन्द्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। दिल्ली केवल भारत की राजधानी ही नहीं अपितु यह एक पर्यटन का मुख्य केन्द्र भी है। राजधानी होने के कारण भारत सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं; प्राचीन नगर होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, जंतर मंतर, क़ुतुब मीनार और लौह स्तंभ जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केन्द्र समझे जाते हैं। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं जैसे बिरला मंदिर, कात्यायिनी शक्तिपीठ, लाल जैन मंदिर, बंगला साहब गुरुद्वारा, बहाई मंदिर, अक्षर धाम मंदिर और जामा मस्जिद देश के शहीदों का स्मारक इंडिया गेट, राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। वर्तमान समय में दिल्ली सम्पूर्ण भारत के व्यापार का मुख्य केंद्र बन चूका है।


समिति

मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन हेतु मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -

प्रधान - श्री जिनेन्द्र जैन नरपत्या

उपाध्यक्ष - श्री विजय लुहाड़िया (विक्की)

महामंत्री - श्री धीरज कासलीवाल जी

मंत्री - श्री गौरव पटौदी जी

कोषध्यक्ष - श्री विनोद पांडया

सदस्य - श्री प्रमोद कुमार वैद

प्रबंधक - श्री पाना लाल जी


नक्शा